गांधी के खिलाफ गोडसे तैयार करने की फैक्ट्री है सोशल मीडिया, रोज फैलाई जा रही है अफवाह

सोशल मीडिया गांधी के खिलाफ तमाम गोडसे तैयार करने की फैक्ट्री है. 70 साल पहले मारे जा चुके गांधी के खिलाफ अब भी रोज अफवाहों की गोलियां चल रही हैं. ये गोलियां चलाने वाले टेक्नो गोडसे कौन लोग हैं?

हमारी पोस्ट पर एक सज्जन ने कमेंट किया, ‘अगर आजादी चरखे से आई थी तो पाकिस्तान सीमा पर चरखा रख दिया जाए, समस्या हल हो जाएगी.’

दुख के साथ कहता हूं कि चरखे पर टिप्पणी करने वाला यह भाई अज्ञान और मूर्खता से भरा है. क्या गांधी या उनके किसी अनुयायी ने ऐसा लिखा है कि आजादी सिर्फ चरखे से आएगी या आई? किसी इतिहासकार ने ऐसा लिखा है कि आजादी सिर्फ चरखे से आई?

चंपारण में नील की खेती करने के लिए अंग्रेज किसानों पर अत्याचार करते थे. गांधी यहां आए तो लोगों ने उन्हें अंग्रेजी अत्याचार की अनंत गाथाएं सुनाईं. जब गांधी को बताया ​गया कि नील फैक्ट्रियों के मालिक कथित निचली जाति के औरतों और मर्दों को जूते नहीं पहनने देते तो उसी दिन से गांधी ने जूते पहनने बंद कर दिए.

8 नवंबर 1917 को सत्याग्रह का दूसरा चरण शुरू हुआ. उनके साथ गए लोगों में कस्तूरबा समेत छह महिलाएं भी थीं. यहां पर लड़कियों के लिए तीन स्कूल शुरू हुए. लोगों को बुनाई का काम सिखाया गया. कुंओं और नालियों को साफ-सुथरा रखने के लिए प्रशिक्षण दिया गया.

गांधी ने कस्तूरबा से कहा कि वे औरतों को हर रोज़़ नहाने और साफ-सुथरा रहने के बारे में समझाएं. कस्तूरबा जब औरतों को समझाने लगीं तो एक औरत ने कहा, “बा, आप मेरे घर की हालत देखिए. आपको कोई बक्सा या अलमारी दिखता है जो कपड़ों से भरा हुआ हो? मेरे पास केवल एक यही एक साड़ी है जो मैंने पहन रखी है. आप ही बताओ, मैं कैसे इसे साफ करूं और इसे साफ करने के बाद मैं क्या पहनूंगी? आप महात्मा जी से कहो कि मुझे दूसरी साड़ी दिलवा दे ताकि मैं हर रोज इसे धो सकूं.”

यह बात सुनकर गांधी ने अपना चोगा बा को दिया कि उस औरत को दे आओ. इसके बाद से ही उन्होंने चोगा ओढ़ना बंद कर दिया.

1918 में गांधी अहमदाबाद में करखाना मज़दूरों की लड़ाई में शामिल हुए. वहां उन्होंने महसूस किया कि उनकी पगड़ी में जितने कपड़े लगते हैं, उसमें ‘कम से कम चार लोगों का तन ढंका जा सकता है.’ इसके बाद उन्होंने पगड़ी पहनना छोड़ दिया.

31 अगस्त, 1920 को खेड़ा सत्याग्रह के दौरान गांधी ने प्रण किया था कि “आज के बाद से मैं ज़िंदगी भर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करूंगा.”

1921 में गांधी मद्रास से मदुरई जाती हुई ट्रेन में भीड़ से मुखातिब होते हुए. गांधी के शब्दों में ही, “उस भीड़ में बिना किसी अपवाद के हर कोई विदेशी कपड़ों में मौजूद था. मैंने उनसे खादी पहनने का आग्रह किया. उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा कि हम इतने गरीब है कि खादी नहीं खरीद पाएंगे.”

गांधी ने लिखा है, “मैंने इस तर्क के पीछे की सच्चाई को महसूस किया. मेरे पास बनियान, टोपी और नीचे तक धोती थी. ये पहनावा अधूरी सच्चाई बयां करती थी जहां लाखों लोग निर्वस्त्र रहने के लिए मजबूर थे. चार इंच की लंगोट के लिए जद्दोजहद करने वाले लोगों की नंगी पिंडलियां कठोर सच्चाई बयां कर रही थीं. मैं उन्हें क्या जवाब दे सकता था जब तक कि मैं ख़ुद उनकी पंक्ति में आकर नहीं खड़ा हो सकता हूं तो. मदुरई में हुई सभा के बाद अगली सुबह से कपड़े छोड़कर मैंने ख़ुद को उनके साथ खड़ा किया.”

चंपारण सत्याग्रह से अपने वस्त्रों पर खर्च कम करने का यह प्रयोग करीब चार साल तक चला और अंतत: गांधी गांव के उस अंतिम आदमी की तरह रहने लगे ​जिसके तन पर सिर्फ एक धोती रहती थी.

गांधी गरीब जनता का नेता था. गांधी का निर्वस्त्र शरीर विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए हो रहे सत्याग्रह का प्रतीक बन गया, क्योंकि देश का शरीर भी निर्वस्त्र था.

खादी इन गरीबों का निर्वस्त्र शरीर ढंकने के लिए थी, जिसे जनता खुद बना सकती थी. चरखा लोगों के लिए अपना कपड़ा और अपनी रोटी का इंतजाम करने के लिए रोजगार का ​साधन था. चरखा गरीबी से लड़ने का एक हथियार थी. चरखा और खादी स्वावलंबन का हथियार था, यह बात समझना क्या कठिन है? फिर अफवाह कौन फैला रहा है?

जिस गांधी को उनके जीते जी पुरी ​दुनिया जान गई, आइंस्टीन जैसे दिग्गज दिमाग जिनके मुरीद थे, उनके प्रति नई पीढ़ी के मन में नफरत कौन भर रहा है?

जब आप दस लाख का सूट पहनने वाले नेता को विष्णु का अवतार बताने लगते हैं तब धोती पहने लाठी लिए एक अधनंगा फकीर आपको मजाक का विषय लगेगा ही.

ऐसा तब होता है जब आपको अपनी जड़ों से उखाड़ दिया जाए. मेरी उम्र करीब तीन दशक की है और मैंने इसी सदी में अपने गांव के बुजुर्गों को गांधी की तरह एक धोती में देखा है. मुझे तो गांधी अपने बाबाओं और दादाओं की तरह लगते हैं. गांधी पर हंसने वाले अहमक किस ग्रह से आन कर लाए गए हैं?

गांधी के निर्वस्त्र रहने, चरखा चलाने और खादी पहनने का मजाक उड़ाने का अर्थ है आजादी के लिए संघर्ष कर रही करोड़ों भूखे और अधनंगे लोगों का अपमान करना. क्या हमारी युवा पी​ढ़ी अपने पुरखों को अपमानित करने की नीचता में फंस गई है? जय महात्मा गांधी! जय हिंद! जय भारत!

-Krishna Kant

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