GST के कारण कंगाल हुआ देश, 12 राज्यों ने कहा कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए नहीं है पैसे

GST कानून फेल हो गया है देश गहरे आर्थिक संकट में फंस गया है। देश के 12 राज्यों के सामने अपने कर्मचारियों के सैलरी भुगतान का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है। यह कोई छोटे मोटे राज्य नही है बड़े बड़े राज्य है। महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और त्रिपुरा कोरोना काल में भी स्वास्थ्यकर्मियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रहे हैं उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जो कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के टीचर और स्टाफ को समय पर सैलरी का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं,

आइए समझते हैं कि आखिर इन्हें परेशानी क्या आ रही है। दरअसल जब GST कानून लागू किया गया तो आधार वर्ष 2015-16 को मानते हुए यह तय किया गया कि राज्यों के इस प्रोटेक्टेड रेवेन्यू में हर साल 14 फीसदी की बढ़त को मानते हुए गणना की जाएगी ओर पांच साल के ट्रांजिशन पीरियड तक केंद्र सरकार महीने में दो बार राज्यों को मुआवजे की रकम देगी। लेकिन शुरू से ही इस रकम को चुकाने में केंद्र सरकार देर करती आयी है।

2018-19 आते आते सरकार इसमे आनाकानी करने लगी थी दरअसल जब से नोटबन्दी लागू की तभी से देश की आर्थिक स्थिति बिगड़नी शुरू हो गयी थी 2020 आते आते तो पानी सर तक आ गया। GST कानून में तय किया गया था कि राज्यो को दिए जाने वाले मुआवजे के भुगतान के लिए मुआवजा उपकर लगाया जाएगा। इसी से मुआवजा दिया जाएगा।

शुरुआत से ही इसमे आने वाली रकम लगातार कम होती रही ।वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसटी मुआवजे के रूप में 120,498 करोड़ रुपये जारी किए हैं, जबकि उसे कम्पेनसेशन सेस के रूप में महज 95,000 करोड़ रुपये हासिल किए यानी साफ है कि कोरोना का तो सिर्फ बहाना है सरकार की आर्थिक हालत तो पिछले साल से ही खराब थी।

2018-19 में ही GST मुआवजे की व्यवस्था चरमरा गयी थी आमदनी कम थी खर्चा ज्यादा हो रहा था कोरोना ने इसमे कोढ़ में खाज का काम कर दिया। अब ऐसी परिस्थिति से निपटने के GST कानून में क्या प्रावधान किए गए थे वो समझ लीजिए। जीएसटी कानून में साफ साफ कहा गया है कि राज्यों को मिलने वाला सभी मुआवजा जीएसटी फंड यानी संग्रह से दिया जाएगा। लेकिन यह कही नही लिखा है कि यदि संग्रह कम होता है जरूरत भर को राशि नहीं आती है तो आप इसे केंद्रीय जीएसटी से ले सकते हैं। यह भी नहीं कहा गया है कि केंद्र सरकार इसे अपनी जेब से देगी।’

मोदी सरकार अब चोरी और सीनाजोरी पर उतारू है उसने वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के सामने बयान देते हुए साफ कर दिया कि केंद्र सरकार जीएसटी फॉर्मूले में तय नियम के मुताबिक अब राज्यों की हिस्सेदारी देने की स्थिति में नहीं है।’ यह बयान वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने पिछले महीने ही दिया था। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए तो जैसे तैसे कर मुआवजा दे दिया गया है लेकिन 2020-21 में देने के लिए सरकार के हाथ पाँव फूल रहे हैं अभी कम्पेनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपये देने पड़ रहे थे।

दरअसल GST कानून की पोल अब खुल रही है यह काफी जल्दबाजी में लाया गया और गलत ढंग से लागू किया गया। इस महामारी से जो आर्थिक संकट आया उसने इसकी खामी को उजागर कर दिया।।।अब इस संकट से निकल पाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है।
-Girish Malviya

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