ईद मुबारक…आज ही के दिन हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे को किया था कुरबान

ईद-उल-ज़ुहा इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे प्रमुख त्योहार है। इस पर्व को हज़रत इब्राहिम की कुरबानी की याद के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हज़रत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे हज़रत इस्माइल को कुरबान करने पर राजी हुए थे। इस पर्व का मुख्य लक्ष्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह की सेवा के भाव को जगाना है। ईद-उल-ज़ुहा का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज की भी पूर्ति करता है।

कुरआन में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुरबानी मांगी। हज़रत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे की कुरबानी देने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के लिए उसकी गर्दन पर वार किया, अल्लाह चाकू की धार से हज़रत इब्राहिम के बेटे को बचाकर एक भेड़ की कुर्बानी दिलवा दी। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।

ईद-उल-ज़ुहा के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुरबानी देते हैं। इस कुरबानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक खुद के लिए, एक सगे-संबंधियों के लिए और एक गरीबों के लिए। ईद उल फित्र की तरह ईद उल ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए।

नोट- ईद उल ज़ुहा से जुड़ी यह खास जानकारी उन दोस्तों के लिए जो इसे बकरे वाली ईद कहते हैं या जानते हैं।

अंत में सभी दोस्तों को ईद की बहुत बहुत खुशियां मुबारक़, ध्यान रखें आस पड़ोस में कोई भूखा न रह जाये। हां, कोई कश्मीरी हो तो उसे गले लगाएं और ईद की खुशी में शरीक करें।

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