लालू यादव के MY फैक्टर में तेजस्वी ने जोड़ा एक और Y, जो बन गया जीत की बड़ी वजह

PATNA : बिहार चुनाव में एक्सिस माय इंडिया और इंडिया टुडे ग्रुप के एग्जिट पोल से लगता है कि 31 साल के तेजस्वी पर लोगों ने भरोसा किया है. अगर ऐसा होता है तो किस लिए? दरअसल, पिछले चुनाव में तेजस्वी ने जो दिशा तय की, लगता है कि चुनाव उसी दिशा में गया. तेजस्वी ने दस लाख नौकरियों पर ऐसा दांव खेला जो एग्जिट पोल के मुताबिक सही बैठता दिख रहा है. 10 लाख वोटों का सवाल बिहार के चुनाव में तुरुप का पत्ता बन गया. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी की दुखती रग पर उंगली रख दी. तेजस्वी ने खुलेआम डंके की चोट पर कहा कि सरकार बनी तो दस लाख लोगों के लिए सरकारी नौकरी पक्की.

अगर एक्सिस माय इंडिया और इंडिया टुडे ग्रुप के एग्जिट पोल वास्तविक नतीजों में बदलते हैं तो ये मानना होगा कि बिहार के लोगों ने तेजस्वी के वादे पर भरोसा किया, न कि नीतीश कुमार के उस चुटकी और तंज पर जो चुनावी रैलियों में वो कसते रहे. बिहार देश के सबसे बेरोजगार प्रदेशों में गिना जाता है. तेजस्वी ने दस लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया तो बीजेपी ने 19 लाख लोगों को रोजगार का अवसर देने का. वहीं नीतीश कुमार ने लोगों को काम देने की बात की. बिहार के चुनावों में जाति और मजहब भी अपना रंग दिखा देता है लेकिन रोजगार के सवाल ने जाति और मजहब की लकीरों को मिटा दिया. कमाई से आगे दवाई, पढ़ाई और सिंचाई की बातें भी तेजस्वी हमेशा उठाते रहे. लेकिन नौकरी के अलावा जो मुद्दा अंदर ही अंदर लोगों के अंदर सुलगता रहा, वो था कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों का. अगर एग्जिट पोल के आंकड़े सही हैं तो पैदल अपने घरों को लौटे लोगों की पीड़ा शायद वोट के रूप में छलक रही है. तेजस्वी ने इस सवाल को भी बड़ा मुद्दा बना दिया.

अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित होते हैं तो तेजस्वी की ये जीत याद रखने लायक होगी. तेजस्वी ने अपने पिता लालू प्रसाद यादव के साए से निकलकर ये चुनाव लड़ा. पिछले तीस सालों में ये पहला चुनाव था जिसमें लालू का सीधा दखल नहीं था. लेकिन तेजस्वी ने आरजेडी और विपक्ष की राजनीति की धुरी लालू से खिसकाकर खुद को बना दिया. 1990 में लालू प्रसाद यादव जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो सामाजिक न्याय को उन्होंने अपनी राजनीति का आधार बनाया. लेकिन धीरे-धीरे ये कहा जाने लगा कि लालू सिर्फ ‘माई’ समीकरण पर काम करते हैं. ‘माई’ यानी एम से मुसलमान और वाई से यादव. लेकिन तेजस्वी ने इसे बिहारी अस्मिता में बदलने की कोशिश की. महागठबंधन की तरफ से अगर एक चेहरा चुनाव प्रचार में दिखा तो वो थे तेजस्वी. तेजस्वी ने इसे भी अपने प्रचार का हथियार बना दिया. एक्सिस माय इंडिया और इंडिया टुडे ग्रुप का ये एग्जिट पोल हमेशा सही साबित होता रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी ये एग्जिट पोल सही साबित हुआ था. अगर इस बार भी सही साबित हुआ तो तय मानिए कि ये बिहार की राजनीति में एक क्रातिकारी अंगड़ाई साबित होगा. 1995 का चुनाव बिहार के इतिहास में काफी अहम रहा. जब लालू का जादू बिहार के सिर चढ़कर बोला. लालू प्रसाद यादव ने अपने दम पर बिहार में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई. अब बारी तेजस्वी यादव की है. अगर सर्वे का आंकड़े सही साबित हुए तो तेजस्वी अपने ही पिता का रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं.

जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू… लालू राज की ये कहावत लालू के बिहार की राजनीति में दमखम की कहानी बयां करती है. 90 के दशक से शुरू हुई लालू की सियासत जिस तरह आगे बढ़ रही थी, उस दौर में बिहार में लालू राज का अंत किसी कल्पना से कम नहीं था. 90 का दौर जब केंद्र में सियासी उथलपुथल अपने चरम पर थी, उस वक्त बिहार की सियासत में लालू यादव एक बड़ा चेहरा बनकर सामने आए. पहले यादवों की अगुवाई और फिर 1989 में भागलपुर दंगों के बाद कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध…. लालू यादव के जनाधार में MY फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव का बड़ा योगदान रहा. जिससे खुद कभी लालू ने इनकार नहीं किया. 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ. देश के कई हिस्से में दंगे शुरू हो गए, पर लालू प्रसाद मुस्लिम संप्रदाय के हिमायती और एक सेक्युलर नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करते रहे. 1990 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 324 में से 122 सीटें लाकर जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा… तो 1995 में लालू का जादू ऐसा सिर चढ़कर बोला. जनता दल ने 167 सीटों पर जीत हासिल कर बड़े बहुमत के साथ सरकार बना ली. 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद बड़ी आबादी को गोलबंद करने के लिए भाषण देते थे. अगड़ा, पिछड़ा, अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा और दलित… ये सब उनके भाषण के केंद्र में होते थे. लालू यादव जहां सामाजिक न्याय की बात करते थे. वहीं तेजस्वी ने इस बार बिहार में विकास और रोजगार को मुद्दा बनाया. वहीं खुद को लालू की छवि से दूर रखने की कोशिश की. तेजस्वी ने MY फैक्टर में एक Y जोड़ दिया… यानी मुस्लिम यादव और यूथ… जिसे रोजगार और विकास का भरोसा दिया गया. यानी सामाजिक न्याय के मुद्दे से अब तेजस्वी ने अपनी पार्टी को विकास और रोजगार की पहचान देने की कोशिश की.

1995 में दोबारा मुख्यमंत्री बनकर लालू ने इतिहास रचा. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह के 38 साल बाद लालू प्रसाद पहले ऐसे नेता बने जो पूरे पांच साल तक शासन में रहे. श्री कृष्ण सिंह और लालू प्रसाद के बीच बिहार में 23 बार 18 नेताओं ने सरकार बनाई, लेकिन पूरे पांच साल सरकार चलाने में कोई भी सफल नहीं रहा. अगर एक्जिट पोल के दावे सही साबित हुए तो तेजस्वी भी एक बार फिर पिता का वही मैजिक दोहराएंगे और 31 साल की उम्र में सीएम बनकर न केवल बिहार बल्कि देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम करेंगे. सबसे बड़ी बात, ये जंग तेजस्वी ने अकेले लड़ी है. इस बार न ही लालू प्रचार के लिए मैदान पर थे और न ही लालू का चेहरा आरजेडी के पोस्टर में यानी तेजस्वी अब अपने हिसाब से पार्टी को आगे ले जाने की कोशिश कर रहे है. रैलियों में उमड़ी भीड़ भी लालू जैसा मैजिक दिखा रही थी. अब अगर 1995 के लालू वाला प्रदर्शन तेजस्वी दोहराते हैं तो बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. बिहार को 31 साल का वो युवा चेहरा मिलेगा जिसके पास उम्र कम है और सामने राजनीति का एक लंबा करियर.

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