जदयू के 18 से ज्यादा बागी नेता चुनावी मैदान में उतरे, रिजल्ट करेंगे प्रभावित

राजनीतिक दलों द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को दल की नीति-रीति की सीख देने में बिहार में सत्ताधारी दल जदयू ने किसी से कम मेहनत नहीं की है। चाहे प्रशिक्षण की बात हो या फिर संवाद करने की, जदयू ने पिछले कुछ वर्षों में अपने संगठन पर बूथ स्तर तक काम किया है। अलबत्ता इस दौरान दल के नेता द्वारा कई सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अभियान भी चलाए गए। लेकिन जब टिकट की बारी आयी और उम्मीदवारी नहीं मिली तो कइयों ने दलीय निष्ठा ताक पर रख दी। कूद गये मैदान में, यह चिंता किए बगैर कि इससे उनके दल और गठबंधन को नुकसान होगा। 

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले दोनों चरण के उम्मीदवार पर ही गौर करें तो देढ़ दर्जन से अधिक जदयू के बागी चुनाव मैदान में उतर गए हैं। कहीं ये एनडीए के दूसरे घटक दल भाजपा को तो कहीं अपनी ही पार्टी जदयू को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मैदान में उतरे जदयू के ऐसे बागियों में बेटिकट हुए कई विधायक, कुछ पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री तो कई जदयू संगठन से जुड़े नेता भी हैं। 



जदयू ने पहले चरण में ऐसे 15 और दूसरे चरण के ऐसे चार नेताओं को दल से निष्कासित कर दिया है, बावजूद इसके बागियों पर कोई खास असर नहीं दिख रहा। दूसरे चरण में जदयू के बागी शैलेन्द्र प्रताप सिंह तरैयां जबकि जदयू के पूर्व विधायक मंजीत सिंह बैकुंठपुर से मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। दूसरे चरण में जदयू के बागी विधायक रवि ज्योति पाला बदलकर कांग्रेस से मैदान में कूद चुके हैं। पहले चरण में भी जदयू के कई ऐसे बागी हैं जो परिणाम को प्रभावित करेंगे। जगदीशपुर सीट से टिकट नहीं मिलने पर श्रीभगवान सिंह कुशवाहा लोजपा के सिम्बल पर जदयू प्रत्याशी के खिलाफ डटे हैं।

विधायक ददन पहलवान निर्दलीय डुमरांव से जदयू उम्मीदवार अंजुम आरा के खिलाफ मैदान में हैं। इन दोनों के अलावा पार्टी ने बगावत करके चुनाव लड़ रहे पूर्व मंत्री रामेश्वर पासवान, पूर्व विधायक रणविजय सिंह, सुमित सिंह, रामचन्द्र सदा, ललन भुइयां समेत अबतक 19 नेताओं को निकालकर सख्त संदेश देने की कोशिश की है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह का इस बाबत कहना है कि संगठन से बगावत करने वालों पर पार्टी का रुख साफ है। यह बात ऐसे लोगों को समझ लेना चाहिए।

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