भाजपा नेता ने पूछा— क्या इसने थूका है, जवाब मिला; इसे थूकना नहीं फ़ातिहा पढ़ना कहते हैं…

शाहरुख खान ने लता के पार्थिव शरीर पर दुआ मांगकर मारी फूंक; लोगों ने समझा कुछ और…शाहरुख खान और उनकी मैनेजर पूजा ददलानी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी, लेकिन शाहरुख के श्रद्धांजलि के तरीके पर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं. दरअसल, शाहरुख खान और उनकी मैनेजेर पूजा ददलानी दोनों एक साथ लता मंगेशकर के पार्थिक शरीर को श्रद्धांजलि देने मंच में चढ़े थे. मैनेजेर पूजा ददलानी वहां हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं जबकि शाहरुख खान ने पहले वहां खड़े होकर दुआ पढ़ी फिर इसके बाद उन्होंने अपना मास्क नीचे खिसका कर झुककर पार्थिक शरीर पर फूंक मारी. इसके बाद शाहरुख खान हाथ जोड़कर पार्थिव शरीर की परिक्रिमा कर मैनेजेर पूजा ददलानी के साथ मंच से नीचे उतर गए.

Arun Yadav(Haryana BJP) – क्या इसने थूका है Shobhna Yadav-इसको थूकना नहीं …. दुआ पढ़ कर फूंकना कहते हैं..दुआ है ये .. Rubika Liyaquat-अरुण जी इसे थूकना नहीं फ़ातिहा पढ़ना कहते हैं… दुआएँ पढ़कर फूंकना कहते हैं….

NARENDRA NATH MISHRA-स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन के बाद पूरा देश एक साथ उनकी यादों के साथ जुड़ा रहा। सभी ने अपने तरीक़े से लता दीदी को सम्मान दिया जिसकी वह हक़दार थीं। वह हिंदुस्तान की आवाज़ थी।अंतिम यात्रा में भी हिंदुस्तान को जोड़ कर गयी। अंतिम संस्कार के दौरान की यह तस्वीर असली भारत की तस्वीर है। ऐसी बेला में दुआ में भी नफ़रत खोजने लगे। शाहरुख़ खान की निकली दिल से दुआ और श्रधा पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन्हें इग्नोर कीजिए। वे दिमाग़ से बीमार हो चुके हैं।

Ajit Anjum लता जी के लिए फातिहा पढ़ते और दुआ करते शाहरूख खान की इस खूबसूरत तस्वीर के लिए कल जो सोशल मीडिया में लिखा गया , वो बहुत अफसोसनाक है . जब से होश सँभाला है मैंने इतना बुरा दौर नहीं देखा.इतनी नफ़रत भरी जा रही है मोदी राज में . खिलाड़ी से लेकर कलाकार तक सब ‘मुसलमान’ पहले हैं
मोदी -शाह और योगी की सत्ता ने देश को हिन्दू -मुसलमान में इतना बाँट दिया है कि उसे पाटना बहुत मुश्किल होगा.हिन्दी बेल्ट में तो बुरा हाल है.

GARIMA URVISHA- बिल्कुल, जिस बात पर अब सवाल उठ रहे हैं वो निहुँचने (नजर उतारने) की प्रक्रिया है जो हिंदू धर्म में भी अक्सर देखा जा सकता है। औरतें अपने बच्चों को बाधा मुक्ति के लिए जब नजर उतारती हैं तो थूकथूका देती हैं। ये वही प्रक्रिया थी। और इतने लोगों के बीच कैमरे में कैद हुआ वो लम्हा, इतना बेवकूफ तो नहीं हो सकता है कोई उसमें भी सुर्खियों में रहनेवाले लोग। हमारी नानी ऐसा करती थी जब भी घर से कोई भी बाहर जाता या परीक्षा देने जाना होता तो। हमलोग खूब चिड़चिड़ाते थे। फिर धीरे-धीरे अब ये सब बंद हुआ है। मगर चीजें तो हैं। देखने का नजरिया चाहिए बस।

MANOJ JHA– इस दुआ के लिए जुड़े हाथ से तकलीफ नहीं है भैया.. मास्क निचे कर थूकथुकाने से तकलीफ है अगर आपको विशेष जानकारी हो तो बताए …..पर हमारे संस्कृति मे तो इसे एक घिनौना कार्य माना जाता है

Gautam Sharma-मनोज झा ज़ी, ‘हमारी संस्कृति’ ही असली झगडे की वजह. ख़ैर समाजशास्त्र का एक नियम है कि जो ब्यक्ति यह कहे कि उसकी संस्कृति महान है दूसरे की संकीर्ण तो यह मान लेना चाहिये कि उस ब्यक्ति का समाजिक करण नही हुआ है. यह प्रश्न बार बार संविधान सभा मे भी उठा था भाषा को लेकर, खान -पान को लेकर, संबंधो और पहनाओ को लेकर. उदाहरण देखिये – हमारे यहाँ मामा- भांजी की शादी नही हो सकती जबकि दक्षिण भारत के ब्राम्हणो मे ऐसी शादी सबसे अच्छी मानी जाती है. UP के ब्राम्हण मांस नही खाते लेकिन बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों मे खाते हैं. हम अपने लड़की के घर पानी नही पीते या उसके लिए पैसे देते हैं जबकि दक्षिण मे ऐसा कुछ नही है. ये सभी उदाहरण हिन्दू धर्म के बीच के है अभी तो सोचिये अंतर धार्मिक संस्कृति विभिनताये कितनी होगी. पुरे भारत की संस्कृति केवल हम हिंदी हिन्दू उत्तर भारत की संस्कृति नही है.

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