बिहार के 100 से अधिक गांवों में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं, फिर भी मनाया जाता है मुहर्रम

सिरदला के कुशाहन निवासी 35 वर्षीय सचिन कुमार रेलवे में कर्मचारी हैं। वह पिछले दस दिनों से मुहर्रम के लिए छुट्‌टी लेकर गांव आए हैं। मंगलवार को उसने ग्रामीणों के साथ मिलकर ताजिए का पहलाम किया। सचिन के लिए यह पहला अवसर नहीं है। वह कई सालों से इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम के अवसर पर घर आते रहे हैं। सचिन कहते हैं कि उनकी आस्था जुड़ी है। आस्था की कोई जाति और मजहब नहीं होता। वह कहते हैं कि तीन पीढ़ियों से ताजिया बनाते आ रहे हैं। उनके पूर्वज जेठू राजवंशी ने शुरुआत की थी। इमाम साहब की इबादत से उन्हें संतान हुआ था। उसके बाद से इमाम साहब की याद में ताजिया बनाते आ रहे हैं। प्रार्थना करते हैं और सलामती का दुआ करते हैं। 70 वर्षीय सुचित राजवंशी कहते हैं कि ग्रामीण लोग आपस में सहयोग कर इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं।


कर्बला में शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन की शहादत को बिहार में परंपरागत तरीके से मनाया गया। इस माैके पर पटना समेत पूरे प्रदेश में मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। यह तस्वीर पटना सिटी चौक थाना मोड़ की है।

ग्रामीण तजिया के समीप बैठकर मातम मनाते हैं और मर्सिया पढ़ते हैं। जंगबहादुर मांझी और मणिलाल चौधरी कहते हैं कि भटविगहा की आबादी 1200 है। एक भी मुस्लिम परिवार नहीं हैं। लेकिन इमाम साहब की इबादत की जाती है। जहानपुर की सुनैना देवी महिला ताजियादार हैं। करूणा बेलदारी, बभनौली में सिर्फ हिंदू ही ताजिया बनाते हैं।

ताजिया का निर्माण भी हिंदू ही करते हैं। नरेश राजवंशी, सत्येन्द्र राजवंशी और छोटू राजवंशी ने ताजिए का निर्माण किया। जेहलडीह, भरसंडा, बांधी, झगरीविगहा, कारीगिधी, सोनवे, छोनुविगहा, चैबे समेत 57 गांव हैं, जहां सिर्फ हिंदू ताजिया का निर्माण करते हैं। सिरदला में सिर्फ 106 ताजिये का लाइसेंस हैं, जिनमें 49 ही मुस्लिम परिवारों के पास।

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