सोचा नही था कि जीवन मे ये भी दौर देखना पड़ेगा, जब बम्बई से बिहार के दरभंगा पैदल जाना पड़ेगा

सोचा नही था कि जीवन मे ये भी दौर देखना पड़ेगा, जब बम्बई से बिहार के दरभंगा पैदल जाना पड़ेगा

सोचा नही था कि जीवन मे ये भी दौर देखना पड़ेगा, जब बम्बई से बिहार के दरभंगा पैदल जाना पड़ेगा। बम्बई से 100 किलोमीटर आगे बढ़े तो चप्पल टूट गयी, पैरों में पन्नी बांधा थोड़ी देर के बाद वो भी फट गई, पांव के पंजे की परत मोटी हो गयी, ऊपर से धूप। पता नही कौन से पाप की सज़ा मिल रही है।

मुम्बई के कुरला में मज़दूरी करने वाले मिथलेश पैदल लखनऊ पहुंचे तो बात करने पर उनका द’र्द छलकने लगा। चलते चलते पैरों में छा’ले पड़ चुके है, कहीं पानी दिखता है ज़मीन पर या रास्ते मे कोई नल दिखा तो पैर भिगा लेते हैं, वक़्ती आराम मिलता है। भूखे म’रने से अच्छा है अपने घर जा कर अपनो के बीच म’रूँ ताकि अं’तिम संस्कार तो परिवार कर सके।

उनके साथी राम बाबू कहते हैं, 6 दिन से लगातार चल रहे हैं, कुछ लोगों ने रास्ते मे खाना दिया, तो किसी ने पानी, वरना अब तक तो म’र गए होते। रास्ते मे खाने पीने की मदद मिलती गयी, लेकिन भइया जीवन मे पहली बार हताश हुए। एक एक पैसा बचा कर भेजते थे घर, जबसे लॉक डाउन हुआ अपने खाने के लिए नही रहा परिवार के लिए क्या भेजेंगे।

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