मधुबनी नरसंहार : पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि नीतीश बिहार के सबसे बड़े बेबस CM हैं

संतोष सिंह, संपादक, कशिश न्यूज़ : 2005 के बाद पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि नीतीश कुमार बेबस मुख्यमंत्री हैं जी है होली के दिन नवादा में जहरीली शराब से हुई मौत मामला में और मधुबनी में होली के ही दिन हुए नरसंहार मामले में स्थानीय प्रशासन की जो भूमिका रही है उससे साफ जाहिर हो रहा है कि नीतीश कुमार में अब वो बात नहीं रही ।

नवादा जहरीली शराब कांड मामला : याद करिए भागलपुर जेल से निकलने के बाद शहाबुद्दीन ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कहा था कि नीतीश कुमार परिस्थिति के सीएम हैं इस बयान को लेकर बड़ा बवाल मचा था और चर्चा शुरु हो गयी थी कि बिहार 1995 के दौर में तो नहीं लौट रहा है ।शहाबुद्दीन के बयान के बाद बीजेपी से लेकर मुख्यधारा की मीडिया एक साथ नीतीश कुमार के सुशासन और कानून का राज पर सवाल खड़े करने लगे थे ।
लेकिन नवादा में जहरीली शराब पीने से 16 लोगों की मौत के बावजूद जिस तरीके से नवादा के डीएम और एसपी मामले को रफा दफा करने में लगा रहा ऐसा पहली बार नीतीश के राज में हुआ है ।


नवादा डीएम का दुस्साहस देखिए पटना से जब मुख्यमंत्री के आदेश पर आईजी और कमिश्नर स्तर के अधिकारी जांच के लिए नवादा पहुंच कर जांच शुरु कर दिये और प्रथम दृष्टया जहरीली से मौत मानते हुए कार्रवाई और छापामारी शुरु कर दिये उसके बावजूद भी डीएम शाम में मीडिया से आधिकारिक तौर पर बात करते हुए कहा कि जहरीली शराब से कोई मौत नहीं हुई है ।


डीएम के (प्रेस वार्ता) के थोड़ी देर बाद ही जांच टीम में शामिल आईजी अमृत राज और उत्पाद विभाग के आयुक्त बी० कार्तिकेय धनजी ने नवादा आइबी में मीडिया से बात करते हुए कहा कि प्रथम दृश्या यह मामला जहरीली शराब से मौत का प्रतीत होता है सीएम के आदेश पर गठित जांच टीम के ओपिनियन के बावजूद भी नवादा के डीएम और एसपी कार्रवाई करने से बचते रहे आखिरकार मुख्य सचिव और डीजीपी के हस्तक्षेप करने के बाद नवादा नगर थाना प्रभारी और उत्पाद विभाग के दरोगा को कल निलंबित किया गया है और फिर कल पूरी रात नवादा एसपी टाउन थाना में बैठी रही है और पूरी रात जिले के सभी डीएसपी और इंस्पेक्टर के नेतृत्व में गठित एसआईटी छापेमारी कर रही है ।


याद करिए गोपालगंज में जहरीली शराब से मौत के बाद किस तरह की कार्रवाई हुई थी 24 घंटे के अंदर थाने में तैनात सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक को हटा दिया गया था तत्कालीन एसपी अभी भी बीएमपी में सड़ रहा है बाद में सभी पुलिसकर्मी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था इस मामले में स्पीडी ट्रायल चलाया गया था लेकिन नवादा में देखिए वही सरकार है वही सरकार के मुखिया हैं ।लेकिन एक थानेदार पर कार्रवाई करने में सरकार का साथ पैर फूल गया ।

2—-मधुबनी एसपी पूर्व थानाध्यक्ष को निलंबित कर के कानून का राज स्थापित कर रहे हैं

यहां भी घटना होली के दिन ही घटित हुई थी पांच लोगों की सरेआम दिनदहाड़े हत्या हुई और एक घायल अभी भी जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है इतनी बड़ी घटना के बावजूद भी पुलिस मुख्यालय से लेकर एसपी तक जिस तरीके से हाथ पर हाथ डाल कर बैठा है कोई सोच भी सकता है कि नीतीश के राज में ऐसा भी हो सकता है लेकिन सच्चाई यही है कि अभी तक इस मामले में एक भी नामजद अभियुक्ति की गिरफ्तारी नहीं है।


हालात यह है कि राज्य में इतनी बड़ी घटना घटित हुई है इसकी सूचना तक मुख्यमंत्री को नहीं था कल जब इस मामले में कई विधायक ,पूर्व विधायक और सांसद मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा है तब इस घटना की पूरी जानकारी सीएम तक पहुंची है। और फिर सीएम ने जब घटना को लेकर अधिकारियों से बात किये हैं तब आनन फानन में बेनीपट्टी के पूर्व थानेदार को निलंबित किया गया है ,जबकि इस थानेदार का तीन माह पूर्व बेनीपट्टी थानेदार के पद से तबादला हो चुका है।


अभी बेनीपट्टी थाना का प्रभारी एक ट्रेनी डीएसपी है घटना के चार घंटे के बाद ट्रेनी डीएसपी घटनास्थल पर पहुँचता है और इस मामले में जितनी भी लापरवाही बरती गयी है इसके लिए पूरी तौर पर ट्रेनी डीएसपी जिम्मेवार है ।लेकिन परिजनों का आरोप पूर्व थानेदार पर यह था कि नरसंहार में शामिल मुख्य अभियुक्त प्रवीण झा को संरक्षण देता था और मृतक का एक भाई जो जेल में है उसको गलत तरीके से एससी एसटी केस में फंसा कर जेल भेज दिया था ।


इसे सुशासन कहेंगे कही से भी मधुबनी एसपी की कारवाई कानून का राज वाली दिख रही है। अभी भी इस घटना को अंजाम देने वाला अपराधी कहां छुपा है मधुबनी के बच्चा बच्चा को पता है लेकिन पुलिस को पता नहीं है, कुछ अपराधी नेपाल में ठहरा हुआ है उसकी गिरफ्तारी कैसे हो इस भी अभी तक पहल शुरू नहीं हुई घटना के एक सप्ताह बाद भी गिरफ्तारी नहीं होना क्या संदेश है ऐसा कभी नीतीश राज में हुआ है क्या।


बिहार के सामने यह एक यक्ष सवाल है क्या नीतीश थक गये हैं या फिर अधिकारियों से इस कदर घिर गये हैं कि चाह कर के भी वो काम नहीं कर पा रहे हैं वजह जो भी हो लेकिन नीतीश कुमार के इस शैली से राज्य 1995 के दौर में लौट जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी कब तक मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों के सहारे इस तरह की घटनाओं को ढकते रहेंगे ।

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