1966 में बिहार के इस गाँव में पड़ा अकाल, तब अमेरिका के 2 वैज्ञानिकों ने बनवाया था यहां सूर्य मंदिर

अमेरिका के वैज्ञानिकों ने बनवाया था यह सूर्य मंदिर, VIDEO: निर्माण के दौरान निकली थी बेशकीमती मूर्तियां, मान्यता है कि सूर्य की कृपा से गांव की काया : पटना के फुलवारी शरीफ प्रखंड से लगभग 8 किलोमीटर दूर गौनपूरा पंचायत का सूर्य मंदिर आज लोगों की धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र है। मंदिर के ठीक आगे लगभग 5 एकड़ में एक बड़ा तालाब है। जहां छठ पूजा के दौरान श्रद्धालु स्नान, ध्यान करते हैं और सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर और तालाब का निर्माण अमेरिका से आए 2 वैज्ञानिकों के सहयोग से ग्रामीणों ने किया था।

गोविंदपुरा गांव के राजेंद्र ठाकुर (71 वर्ष) बताते हैं कि साल 1966 में यहां भीषण अकाल पड़ा था। लोगों को खाने के लाले पड़ने लगे थे। इसमें कई लोगों के साथ पशु पक्षियों की भी मौत होने लगी थी। इस बीच अकाल की सूचना मिलने पर गौनपूरा गांव से कुछ दूर पर बसे क्रिश्चियन धर्म मानने वाले दो लोग ( जो अमेरिका से आए थे ) दानव फादर एवं लेडी फ्रांसिस गौनपूरा गांव पहुंचे। दोनों ही वैज्ञानिक थे और बीमारियों की रिसर्च के सिलसिले में यहां आए थे। उन्होंने लोगों को बचाने के लिए गौनपुरा गांव के दक्षिण में खाली पड़े गैरमजरूआ जमीन पर लगभग 5 एकड़ में तालाब बनाने का काम शुरू कराया।

जमीन के अंदर से कई बेशकीमती सामान निकले थे
ग्रामीणों के मुताबिक, तालाब निर्माण के दौरान जमीन के अंदर से गौतम बुद्ध की कई मूर्तियां और सोने के सिक्के भी निकले। सिक्कों पर राम और सीता के चित्र बने हुए थे। इसके अलावा जमीन के अंदर से काफी बड़ी आकार की ईंट भी खुदाई में मिली थी। खुदाई के वक्त जमीन के अंदर से 2 व्यक्तियों के शरीर का पूरा ढांचा भी मिला था। तब उन सभी चीजों को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था जो फिलहाल पटना के म्यूजियम में रखी हुई हैं।

3000 मजदूरों ने इस तालाब की खुदाई में अपना योगदान दिया था
गांव के लोग बताते हैं कि उस वक्त गांव के लगभग 3000 मजदूरों ने इस तालाब की खुदाई में अपना योगदान दिया था। उसके एवज में मजदूरों को खाने पीने की व्यवस्था अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने की थी। ग्रामीणों ने बताया कि उस वक्त अकाल के समय में खेतों को पानी की जरूरत थी। तालाब खुदाई के बाद वहां लोगों ने जमकर खेती की।

उस स्थिति का फायदा यह हुआ कि फसल लहलहाने लगी और गांव में खुशहाली फिर से लौटने लगी। तालाब के बगल में वैज्ञानिकों ने ग्रामीणों के कहने पर एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। ऐसी मान्यता है कि उस वक्त कई गांव के लोगों ने मिलकर सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की घंटों आराधना की और गांव के खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगा। कहा जाता है कि भगवान सूर्य की आराधना के बाद वे प्रसन्न हुए और गांव की खुशहाली धीरे-धीरे वापस लौटने लगी।

5000 से ज्यादा लोग भगवान सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचते हैं
ऐसे में धीरे-धीरे इस बात की चर्चा आस-पास के गांव में होने लगी। वर्तमान में स्थिति यह है कि हर साल महापर्व छठ के मौके पर यहां 5 दिनों का विशाल मेला लगता है। इस तालाब में हसनपुरा, ढ़िवरा, बहादुरपुर, गौन पुरा, सोनपुर, माधवपुर, गोरिया डेरा, ईसापुर, हुलारचक सहित दर्जनों गांव के लगभग 5000 से अधिक लोग भगवान सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचते हैं। गांव के राजू चौधरी ने बताया कि तब से आज तक गांव में हर तरफ खुशहाली का माहौल है और यहां के किसान अपनी उपज से बड़े पैमाने पर जीवन यापन करते रहे हैं।

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