सेना के लिए एयरक्राफ्ट बनाने का काम भी प्राइवेट सेक्टर के हवाले, टाटा की झोली में आया प्रोजेक्ट

• कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने नए मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की खरीद को हरी झंडी दी

• यह पहला मौका है जब मिलिट्री एविएशन से जुड़ा कोई कॉन्ट्रैक्ट किसी निजी कंपनी को दिया गया है

• 16 विमान से आयात किए जाएंगे, बाकी 40 10 साल में टाटा की फैसिलिटी में तैयार किए जाएंगे

• इस प्रोजेक्स से आने वाले वर्षों में देश में 6,000 से ज्यादा रोजगार पैदा होने की उम्मीद है

कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने नए मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की खरीद को हरी झंडी दे दी है। यह एयरक्राफ्ट टाटा और एयरबस मिलकर भारत में बनाएगी। यह पहला मौका है जब मिलिट्री एविएशन से जुड़ा कोई कॉन्ट्रैक्ट देश की किसी निजी कंपनी को दिया गया है। इससे आने वाले वर्षों में देश में 6,000 से ज्यादा रोजगार पैदा होने की उम्मीद है। साथ ही इससे देश में एविएशन की अत्याधुनिक तकनीक आएगी।

माना जा रहा है कि यह डील 15,000 करोड़ रुपये से अधिक की होगी। देश में 2012 से ही 56 C295MW ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की दिशा में काम चल रहा है लेकिन इस साल फरवरी में यह मामला CCS के पास पहुंचा था। 16 विमान एयरबस डिफेंस (स्पेन) से आयात किए जाएंगे जबकि बाकी विमान 10 साल में टाटा की फैसिलिटी में तैयार किए जाएंगे। माना जा रहा है कि कोस्ट गार्ड और दूसरी एजेंसियां भी इस तरह के विमानों के लिए ऑर्डर दे सकती हैं जिससे इनकी मांग बढ़ने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक भारत में बने C295MW विमानों को निर्यात किया जा सकता है क्योंकि यह एक किफायती प्रोजेक्ट हो सकता है।

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है जिसमें कोई निजी कंपनी देश में सैन्य विमान बनाएगी। अब तक यह जिम्मा सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के पास था। अब पहली बार कोई निजी कंपनी देश के लिए मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाएगी। सभी 56 विमानों पर स्वदेशी Electronic Warfare Suite सिस्टम लगेगा। ये विमान पुराने पड़ चुके एवरो (Avro) विमानों की जगह लेंगे। इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि इस विमान को निर्यात करने की भी योजना है। एक सूत्र ने कहा, ‘यह एक डीप मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट है जिसमें एक तरफ एल्युमीनियम ब्लॉक्स को आयात किया जाएगा और दूसरी ओर फाइनन एसेंबली लाइन से तैयार विमान निकलेगा।

टाटा ग्रुप के अलावा कम से कम 3 दर्जन सब-सप्लायर्स को भी ऑर्डर मिलने की संभावना है। ये विमानों के लिए कलपुर्जे तैयार करेंगी। यह इस बेड़े के मेंटेनेंस के लिए जरूरी है। इस विमान के कम से कम 3 दशक तक सेवा में बने रहने की उम्मीद है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से आत्मनिर्भर भारत अभियान में तेजी आएगी और यह इससे आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी। एक अधिकारी ने कहा, यह प्रोग्राम एयरोस्पेस इकोसिस्टम में रोजगार पैदा करने के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा। इससे 600 हायली स्किल्ड डायरेक्ट जॉब्स, 3000 इनडायरेक्ट जॉब्स और 3000 मीडियम स्किल्स रोजगार पैदा होंगे।

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