पुण्यतिथि : भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन में पहली बार तीस्ता को देखा था, मंच को रौंद कर रख दिया

भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन में पहली बार तीस्ता को देखा था । सीधे मंच पर । आधी रात के बाद । लोग अलसाने लगे थे । हाथ में खप्पड़ लिए अचानक उतरी थी । शेरनी की तरह । कुंवर सिंह की गाथा गाते-गाते स्वयं कुंवर बन गयी थी । कोई यकीन नहीं कर पा रहा था कि लड़की सिर्फ तेरह साल की है । बीस बाई तीस फुट के मंच को रौंद कर रख दिया था उस रात । जैसे समरभूमि को योद्धा रौंदता है ।

योद्धा ही थी वह । होनहार थी । पढ़ने में मेधावी । सबकी दुलारी । पिता का सपना था कि भोजपुरी में व्यास शैली को लेकर कोई आगे बढ़े । कोई मिला नहीं । कोई आगे नहीं आया । तीस्ता ने पिता की घुटन को समझा था । आगे आई । खुद प्रस्ताव किया । कुंवर सिंह गाथा गायन की बुनियाद रखी जा चुकी थी ।

आसान नहीं था सब कुछ। बेटी..मंच…ब्यास….बाजार.
लड़ना था दोनों को । घर परिवार से । समाज से । अपने आप से । बाजार से । घर परिवार ने अनुमति दी । समाज ने स्वीकार्यता । बाजार सामने था । चुनौती बनकर । तीस्ता को हराने के लिए बाजार तिकड़म करता रहा । तीस्ता आगे बढ़ती रही । अगले चार साल में तीस्ता को भोजपुरी की तीजन बाई कहा जाने लगा था । भोजपुरी के सभी बड़े मंच बाजार को लात मारकर तीस्ता को बुलाने लगे थे ।

बहुत आगे जाना था उसे । गंगा की तरह बहना था । द्रौपदी की तरह क्रोधाग्नि से पापियों का नाश करना था । कुंती बनकर धर्म की स्थापना का साक्षी होना था । लेकिन नियति को मंजूर नहीं था । प्रकृति छीन ले गई संभावनाओं से भरा हमारा अनमोल रत्न ।

आज पुण्यतिथि है तीस्ता का । एकता भवन छपरा में आयोजन है । श्रद्घांजलि सभा, कवि सम्मेलन, संगीत और सबसे महत्वपूर्ण कुंवर सिंह गाथा गान । कलम थामने का सपना देखनेवाली सृष्टि हाथ में खप्पड़ और पैरों में घुंघरू बांध कर उतरेगी । संकल्प और समर्पण का इससे बड़ा नजीर शायद ही मिले । कल पिता के सपनों को पूरा करने तीस्ता उतरी थी । आज पिता और बहन के ख्वाब सच करने सृष्टि आई है ।

आइये । दो पुष्प अर्पित कीजिये । तीस्ता को याद कीजिये । उसके सपने सच हों, दुआ कीजिये ।

लेखक : संजय सिंह, आखर

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