अभी-अभी : नहीं रहे बिहार के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह

अभी अभी एक बड़ी खबर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि बिहार के महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन हो गया। वो काफी दिनों से बीमार थे। कुछ दिन पहले ही उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की अंगुलियों के बीच नाचती कलम कुछ न कुछ लिखती रहती है। मेज पर पड़े अखबार, नोटबुक और कमरे की दीवारों पर अंकों और शब्दों में लिखे वाक्य इस बात का सुबूत देते हैं। कभी रामचरित मानस की आधी-अधूरी चौपाई, तो कभी श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक के अंश भी पन्नों या दीवारों पर अंकित कर दे रहे हैं वशिष्ठ बाबू। ये सुखद संकेत है, गणित की दुनिया के सुपरस्टार वशिष्ठ नारायण सिंह की सामान्य हो रही जिंदगी का। कभी वशिष्ठ बाबू का डंका नासा तक था, लाखों प्रशंसक थे मगर आज दुनिया भूल सी चुकी है उन्हें। वशिष्ठ बाबू पूरी तरह स्वस्थ्य तो नहीं, पर रिस्पांस कर रहे हैं। यह सब कुछ संभव हो सका है नोबा के आर्थिक सहयोग और परिवार वालों की अनवरत सेवा से। नोबा- यानि नेतरहाट ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन। वशिष्ठ बाबू खुद नेतरहाट के विद्यार्थी रह चुके हैं।

कैलीफोर्निया विवि ने माना लोहा

वशिष्ठ नारायण सिंह तब दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए थे, जब 1969 में इन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर शोध किया था। नेतरहाट और फिर उसके बाद पटना विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज में स्कूली व महाविद्यालयी शिक्षा हुई। अपनी प्रतिभा और गणितीय ज्ञान का लोहा दुनिया भर में मनवाने वाले वशिष्ठ बाबू को काल के चक्र ने कुछ ऐसा घेरा कि ये न सिर्फ गुमनाम हुए, बल्कि गुम हो गए। 1993 में जब मिले, तब लगा सब कुछ खत्म हो चुका है। दीन-हीन और मानसिक रूप से बीमार। गणित के इस पुरोधा के ऐसे हालात जब अखबारों की सुर्खियां बने तो सरकार जागी।

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