साम्प्रदायिक घेरेबंदी पर फिसल गई ममता, बंगाल में भाजपा को रोकना मुश्किल

विगत एक दो महीनों में बंगाल की राजनीति को करीब से देखा-पढ़ा है, टीएमसी का चुनावी कैंपेन देखा है, तभी लिख रहा हूं..! विधानसभा चुनाव के नतीजे चाहें जिसके भी पक्ष में आए, एक बात पारदर्शी है कि ममता बनर्जी बंगाल की सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्री रहीं लेकिन विगत दो वर्षों में एक नेता के तौर पर बुरी तरह लड़खड़ा चुकी है, विफल हो रही है। ये वो ममता नहीं है जिसने कांग्रेस को ललकाड़ते हुए अपनी पार्टी बनाई थी, बल्कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा डराई गई महज एक मुख्यमंत्री उम्मीद्वार है।

ये दीदी की कमजोरी ही है जिसने उसे जय श्री राम के जवाब में देवी दुर्गा को खड़ा करने पर मजबूर किया, उनका राजनैतिक अंदाज ऐसा कभी था ही नहीं। विपक्ष की टीका टिप्पणी से वो असहज हो जाती है, वो इतना घबरा जाती है कि बौखलाहट में उन्हें अपना गोत्र बताना पड़ता है। उन्हें बंगाल की बात करनी थी, विकास की बात करनी थी, मुद्दे की बात करनी थी..! लेकिन वो भाजपा के हर सवाल में वो और उलझती चलीं गई।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि चुनाव परिणाम के बाद सरकार बनाने के लिए जो भी आंकड़े चहिए वो तृणमूल कांग्रेस के पास मौजूद रहेंगे, बेशक दीदी इस बार भी सत्ता में आएंगी। लेकिन इसमें भी कोई राय नहीं होनी चहिए कि बंगाल की राजनीति में दीदी और उनकी पार्टी अब उसी दौड़ से गुजर रही है जिस दौड़ में बिहार के नीतीश कुमार और उनकी पार्टी है। ये दीदी की ब्रांड ऑफ पॉलिटिक्स का आखिरी दौड़ है जो 2024 के लोकसभा चुनाव आते आते खत्म भी हो सकता है।

कांग्रेस तोड़कर जब दीदी ने नई पार्टी बनाई, वो संघर्षशील थी, गंभीर थी, लेफ्ट के मज़बूत वट वृक्ष को उन्होंने अकेले चुनौती दिया था। लेकिन आज वो बेबस है, मोदी-शाह की जोड़ी उनके सामने बंगाल को अपना गढ़ बना रही है और वो चुप-चाप देख रही है।

बुधदेव भट्टाचार्य को मात देने में दीदी को सबसे ज्यादा मदद लेफ्ट के नेताओं ने किया था। जब दीदी सत्ता में आई तो वही लोग दीदी के साथ आ गए। इतिहास खुद को दोहरा रहा है। आज दीदी के लोग भाजपा में जा रहे है। दीदी जितना कमजोर हो रही है भाजपा उतनी तेज़ी से पांव पसार रही है और यही कारण है कि 2014 लोकसभा चुनाव में प्रचंड लहर होने के बावजूद महज दो सीटें जीतने वाली भाजपा 2019 के लोकसभा में 18 सीटें जीत जाती है। 2016 विधानसभा चुनाव में महज तीन सीटों पर सिमटने वाली पार्टी 2021 आते-आते 200 सीटें जीतने का दंभ भरने लगती है।

खैर, पिछले एक दशक से दीदी खुद हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलकर कांग्रेस और लेफ्ट को सत्ता से दूर भेज रही थी आज उनके साथ भी वही हो रहा है। आज भाजपा के अधिकतर उम्मीद्वार टीएमसी के कैडर वाले है। मोदी-शाह की जोड़ी जिन लोगों पर भरोसा करके 200 सीटें जीतने का दावा कर रही है वो भी टीएमसी से भागे हुए लोग ही है। इसीलिए नतीजों का इन्तजार कीजिए। देश और बंगाल के हेल्थी डेमोक्रेसी के लिए ममता बनर्जी का जीतना बेहद जरूरी है। भारत के लोकतंत्र के लिए बंगाल में “खेला” होना जरूरी है।

प्रियांशु

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