सीता की खोज में अंबाजी आए थे राम, पुजारी आंखों पर पट्‌टी बांध करते हैं पूजा

अंबाजी मंदिर पौराणिक काल से है। पुराणों और धर्मग्रंथों में भी इसका वर्णन है। नजदीक स्थित गब्बर शिखर में देवी मां के 51 शक्तिपीठ मंदिरों के प्रतिरूप भी स्थापित हैं, ताकि श्रद्धालुओं को एक ही जगह सभी के दर्शन हो जाएं। इनकी पूजा भी मूल शक्तिपीठों की तरह ही की जाती है। शक्तिपीठ में मां अंबा एक श्रीयंत्र के स्वरूप में हैं, जिसकी पूजा पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर करते हैं।

उत्तर गुजरात के बनासकांठा में स्थित अंबाजी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मान्यता के अनुसार, यहां मां सती के हृदय का भाग गिरा था, जिसके बाद इसे शक्तिपीठ कहा गया। यह देश का इकलौता शक्तिपीठ है, जहां आरती में एक मिनट का विराम लिया जाता है। कहा जाता है कि सीता की खोज में भगवान राम, लक्ष्मण के साथ अंबाजी आए थे। श्रीकृष्ण का चौलकर्म भी यहीं होने की मान्यता है।

एक चरवाहे की किवदंती भी है, जिसे अंबाजी ने दर्शन दिए थे। बरसों से सिद्धपुर के मोनास गोत्र के ब्राह्मण परिवार को यहां पूजा का अधिकार मिला हुआ है। अंबाजी मंदिर सफेद पत्थर से बना है और शिखर पर स्वर्ण आवरण है। मान्यता है कि अंबाजी शक्तिपीठ का मूल प्राकट्य स्थल गब्बर शिखर ही है, जो नजदीक स्थित है।

मूल शक्तिपीठों में जिस तरह पूजा-पाठ होती है, उसी तरह यहां भी पूजन परंपरा है। देवस्थान ट्रस्ट अंबाजी, गब्बर शिखर और शक्तिपीठ की व्यवस्था संभालता है। मंदिर में हर साल 50 लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं। भादो की पूर्णिमा पर अंबाजी में लोकमेला लगता है, जिसमें हर साल लंबी पदयात्रा कर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस बार कलेक्टर के परिवार से यहां घट-स्थापना कराई गई है। वहीं मंदिर ट्रस्ट ने भक्तों के लिए परिसर में ही किफायती भोजन की व्यवस्था की है। शुद्ध घी से बना मोहनथाल प्रसाद के रूप में दिया जा रहा है।

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