बिहार के लाल, नालंदा के बेटे देवेश ने बनाया दुनिया का सबसे सस्ता वेंटिलेटर, दाम मात्र 7000

दुनिया का सबसे सस्ता वेंटिलेटर बनाने वाली दंपती नालंदा के हंै। बेन प्रखंड के बड़ी आंट गांव के मूल निवासी डॉ। देवेश रंजन व पत्नी कुमुदा रंजन अमेरिका के जॉर्जिया स्टेट में बस गये हैं। देश की मदद उनकी प्राथिमकताओं में शामिल है। कहते हैं कि अगर बिहार या भारत सरकार वेंटिलेटर बनाने की कंपनी स्थापित करे तो वे तकनीकी मदद करेंगे। रॉयल्टी भी नहीं लेंगे। इससे दाम काफी कम हो जाएगा।

तीन हफ्ते की मेहनत की बाद उन्होंने 100 डॉलर (करीब साढ़े 7 हजार रुपये) वाला वेंटिलेटर बनाया। इसे सिंगापुर का रिन्यू ग्रुप बना रहा है। जल्द ही काफी संख्या में वेंटिलेटर तैयार होंगे। भारत सहित कई देशों में इसकी बिक्री शुरू हो गी। यह इतना पोर्टेबल है कि इसे आसानी से घर में रख सकते हैं। जबकि, फिलहाल डेढ़ से दो लाख में एक वेंटिलेटर आता है। देवेश जॉर्जिया टेक स्थित जॉर्ज डब्ल्यू वुड्रफ स्कूल ऑफ मेकैनिकल इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

कौन हैं देवेश : देवेश के पिता रमेश चंद्र सिंचाई विभाग के रिटायर अफसर हैं। देवेश ने इंटर की पढ़ाई पटना साइंस कॉलेज से की। तमिलनाडु के त्रिची रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बैचलर डिग्री ली। यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन मेडिसन से मास्टर्स व पीएचडी की। पत्नी कुमुदा डॉक्टर हैं व उनका जन्म बेंगलुरू में हुआ। छोटी उम्र में ही वे माता-पिता संग अमेरिका चली गई थीं। न्यूजर्सी में मेडिकल की पढ़ाई की।

कैसे है कोरोना में सहायक : यह ओपन एयरवेंट जीटी वेंटिलेटर है। एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम के इलाज के लिए बनाया गया है। कोरोना मरीजों में इसी सिंड्रोम के कारण फेफड़ा सख्त हो जाता है। सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। तब, वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है।

कोरोना संक्रमण के लिए ही बनाया गया है वेंटिलेटर : यह एक ओपन एयरवेंट जीटी वेंटिलेटर है। यह वेंटीलेटर एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम (Acute Respiratory Distress Syndrome) के इलाज के लिए बनाया गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण में मरीजों में यही सिंड्रोम बड़ी समस्या बनकर सामने आया है। इसके चलते फेफड़े सख्त हो जाते हैं और सांस लेने में दिक्कत होती है। इस वजह से मरीज को वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है। प्रोफेसर देवेश रंजन ने बताया कि कम कीमत के वेंटिलेटर का आविष्कार हम लोगों ने इस वजह से किया कि भारत जैसे विकासशील देश बड़ी संख्या में महंगा वेंटिलेटर अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। ऐसे में भारत के लिए लो कॉस्ट वेंटिलेटर बनाने की जरूरत है और भी जो देश महंगा वेंटिलेटर अफोर्ड नहीं कर सकते हैं उनके लिए यह वरदान साबित होगा।प्रो। देवेश रंजन ने बताया कि उनका बनाया वेंटिलेटर, आईसीयू वेंटिलेटर नहीं है। यह एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम के इलाज के लिए बनाया गया है।

बड़ी संख्या में बनने की वजह से ये सस्ता होगा : देवेश बताते है कि अगर इसे अधिक संख्या में बनाया जाए तो इसकी लागत 100 डॉलर यानी करीब साढ़े सात हजार रुपए आएगी। अभी फिलहाल डेढ़ से दो लाख का एक वेंटिलेटर आता है । देवेश ने अपनी टीम के साथ प्रोटोटाइप वेंटिलेटर को महज तीन हफ्ते में तैयार कर लिया। उन्होंने बताया कि इस वेंटिलेटर का प्रोडक्शन जल्द शुरू होने वाला है। यह भारत में भी मिलने लगेगा।

भारतीय बाजार में जल्द उपलब्ध होगा सस्ता वेंटिलेटर : देवेश बताते है कि प्रोटोटाइप से वेंटिलेटर बनाने का काम शुरू हो चुका है। इसे सिंगापुर का रिन्यू ग्रुप बना रहा है, उनके मुताबिक जल्द ही काफी संख्या में यह वेंटिलेटर बनकर तैयार हो जाएगा। भारत सहित कई देशों में इसकी बिक्री भी शुरू हो जाएगी। यह इतना पोर्टेबल होगा कि लोग इसे बहुत ही आसानी से अपने घर में रख सकते हैं।

देवेश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पटना से की : प्रोफेसर देवेश रंजन का जन्म बिहार के नालंदा जिला की बेन प्रखंड की बड़की आट गांव में हुआ। इनके पिता रमेश चंद्र सिंचाई विभाग के अधिकारी रहे हैं। देवेश रंजन ने अपनी पढ़ाई पटना के ज्ञान निकेतन से की, वही इन्होंने पटना साइंस कॉलेज से अपनी प्लस टू की परीक्षा पास की। देवेश ने बिहार इंजीनियरिंग के परीक्षा में 45 रैंक लाकर अपनी प्रतिभा को पंख लगाया । तमिलनाडु के त्रिची के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने बैचलर डिग्री ली। यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मेडिसन से मास्टर्स और पीएचडी की।यहीं से देवेश रंजन ने अपनी यात्रा जॉर्जिया यूनिवर्सिटी तक की।

देवेश को इस अविष्कार में अपनी डॉक्टर पत्नी का मिला साथ : देवेश की पत्नी कुमुदा का जन्म बेंगलोर में हुआ। जब कुमुदा छठी क्लास में थी तब माता-पिता के साथ बेंगलोर से अमेरिका चली गई थी। न्यूजर्सी में उन्होंने मेडिकल ट्रेनिंग ली। देवेश के इस अविष्कार में एक चिकित्सक महत्वपूर्ण भूमिका थी जो डॉ। कुमुदा ने निभाया। डॉ कुमुदा बताती है कि हमारे इस काम का एक ही मकसद है कि कम कीमत में वेंटिलेटर बनाना, जिसका पूरी तरह से नियंत्रण डॉक्टर के हाथ में रहे। इस समय दुनिया में वेंटिलेटर की कमी है। दुनिया में लाखों लोग कोरोना की वजह से मर चुके है और लाखों संक्रमित हैं ऐसे में ये उपकरण बहुत जरूरी था।

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