बिहार में अफसरशाही बेलगाम, जनता की परेशानी सुने बिना आवेदनों को खारिज कर रहे हैं अधिकारी

PATNA : बिहार में पांच साल पहले लोगों को शिकायत निवारण का कानूनी अधिकार मिला। लेकिन, सोमवार को मुख्यमंत्री के जनता दरबार में जो हकीकत सामने आई उससे खुद नीतीश कुमार भी भौंचक रह गए। इसके बाद लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम की जमीनी हकीकत की पड़ताल कराई तो पुख्ता हो गया कि अफरशाही ने इस कानून के उद्देश्य को पूरी तरह विफल कर दिया। पिछले पांच साल में जनता की 52.44% शिकायतों पर ही ठोस कार्रवाई हुई।

बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद यानी 5 जून 2016 से अब तक 9,94,104 लोगों के आवेदन आए। इनमें 5,21,217 आवेदन पर ही सुनवाई के बाद कार्रवाई के आदेश जारी हुए। जबकि, 1,99,010 आवेदनों (21%) को बिना सुनवाई के रिजेक्ट कर दिया गया। हालांकि, दावा किया जा रहा है कि 95.35% आवेदनों को निष्पादित किया गया है। 4.65 % आवेदन ही पेंडिंग हैं। लेकिन, रिजेक्ट किए गए 1,99,010 आवेदनों को भी निष्पादित मान लिया गया है। साथ ही, वैकल्पिक सुझाव दिए जाने वाले 2,27,440 आवेदनों को भी निष्पादित की श्रेणी में रखा गया है। 46,435 आवेदनों को पेंडिंग माना गया है। इस हिसाब से अब तक 472885 (यानी 47.56 %) आवेदनों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

हकीकत: 9.94 लाख में 4.72 लाख लोगों काे नहीं मिला न्याय
लोक शिकायत के तहत स्थानीय स्तर पर पदाधिकारियों द्वारा जनता की बात नहीं सुने जाने की शिकायत आती रही है। हाल के दिनों में मंत्री व विधायकों के स्तर पर भी यह मामला उठा है। लेकिन, जिम्मेदार अफसरों व कर्मियों पर कार्रवाई नहीं होती। ऐसे में लोक शिकायत पदाधिकारी की ओर से दिए जाने वाले आदेश महज आवेदन निष्पादन की संख्या को बढ़ाने वाले हैं। द्वितीय अपील में डीएम के यहां मामला जाता है। यहां कुछ मामलों में जुर्माना लगाया जाता है। लेकिन, ज्यादातर मामले में अधिकारी बच निकलते हैं। और लोग कार्यालयों का चक्कर लगाने को विवश हैं।

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