बिहार बेगूसराय के ईमानदार MLA रामरतन ​को सलाम, साइ​किल की करता है सवारी, सिंपल है लाइफ स्टाईल

PATNA- बिहार का एक विधायक ऐसा भी, चुनाव में जीतने के बाद करते हैं साइकिल की सवारी, साधारण है इनका जीवन, 30 वर्षों के बाद बीहट से रामरतन सिंह बने विधायक : राजनीतिक रूप से सजग बीहट से 30 वर्षो के बाद रामरतन सिंह विधायक बने हैं। रामरतन सिंह बीहट के छठे व्यक्ति हैं, जिन्होंने विधायक बनकर बीहट का नाम रौशन किया है। सर्वप्रथम बीहट के स्वतंत्रता सेनानी रामचरित्र सिंह वर्ष 1951 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। वर्ष 1957 में भी बतौर निर्दलीय रामचरित्र सिंह विधायक बने। वर्ष 1962 में रामचरित्र सिंह के पुत्र कामरेड चन्द्रशेखर सिंह विधायक बने। जिस समय चन्द्रशेखर सिंह भाकपा के टिकट पर निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे तब उसे समय ए रेड स्टार कम इन बिहार असेंबली के तहत चन्द्रशेखर काफी सुर्खियों में रहे थे। बीहट के ही रामबालक सिंह जमालपुर तथा सीताराम मिश्र मटिहानी से क्रमश 1969 तथा वर्ष 1977 में विधायक बने। वर्ष 1985 में चन्द्रशेखर सिंह की पत्नी शकुंतला देवी विधायक बनी। वर्ष 1990 के बाद बीहट के कई व्यक्ति ने विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिली। वर्ष 2020 में सीपीआई के टिकट पर एक बार फिर रामरतन सिंह विधायक बने हैं।

विधानसभा में कई विधायक चुने गए हैं इन विधायकों में से एक विधायक ऐसे भी हैं जो आज के आडंबर के दौर में भी सादगी से जीता है। जी हां हम बात कर रहें है 143 तेघरा विधानसभा से रिकॉर्ड मतों(लगभग 48 हजार) से जीते सीपीआई के विधायक रामरतन सिंह की जो पहले भी कई बार मुखिया और जिला परिषद सदस्य पद को सुशोभित कर चुके हैं और कई वर्षों से आरसीएसएस कॉलेज बीहट के सचिव और चाँद सुरज अस्पताल पपरौर के उप महानिदेशक भी रहे है ।

स्टूडेंट्स क्लब जैसी कई संस्थाएं इनके संरक्षण में फल फूल रही है।इनके दिन की शुरुआत जनता के समस्याओं से शुरू होती है और दिन का अंत भी इसी तरह। प्रत्येक दिन सुबह 9:00 बजे ये अपनी साइकिल से बरौनी सीपीआई कार्यालय पर पहुंच जाते हैं और जनता के लिए दिन भर सुलभ रहते हैं।कम संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद भी ये क्षेत्र की जनता के सुख-दुख में हरदम हंसते और रोते नजर आते हैं।

समस्या चाहे थाना का हो,चाहे पढाई-लिखाई का हो,चाहे आपसी विवाद का हो या अस्पताल का लोग तुरंत सर्व सुलभ रामरतन सिंह के पास पहुंचते हैं।सादगी इतनी कि पहले उप मुखिया फिर मुखिया फिर जिला पार्षद और अब विधायक बनने के बाद भी चार चक्का वाहन का उपयोग नहीं करते और सुरक्षा गार्ड का भी नहीं।लोग इन्हें आज भी प्यार से “मुखिया जी” ही कहते हैं, इनका मानना है कि हमारी जनता गरीब है जीवन की समस्याओं से दुखी है और यही जनता हमारी मालिक भी है इनके सुख दुख में साथ रहना ही हमारी जिम्मेवारी है।

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