बच्चे के शव को बाइक से ले गए परिजन, पोस्टमार्टम हाउस तक के लिए स्ट्रेचर नहीं दिया

पटना : सरकारी अस्पताल से एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण शव को कंधे पर, साइकिल पर और ठेले पर ले जाना अब बात हो गई है। हर दिन एक-दो मामले ऐसे आ ही जाते हैं जब मानवता शर्मसार होती है और व्यवस्था लाचार दिखती है। ऐसा ही एक मामला सहरसा जिले में देखने को मिला। अस्पताल प्रबंधन द्वारा मृत बच्चे के परिजनों को शव वाहन तक मुहैया नहीं कराया गया। शव को बाइक से ही पोस्टमार्टम रूम तक परिजन लेकर गए। पोस्टमार्टम रूम तक पहुंचने के बाद दरवाजा तक किसी ने नहीं खोला तो परिजनों ने खुद पोस्टमार्टम रूम का दरवाजा खोला और शव को अंदर रखा। परिजनों के अनुसार प्रबंधन से उन लोगों ने स्ट्रेचर की मांग भी की, लेकिन उन्हें स्ट्रेचर भी नहीं दिया गया। इस दौरान बच्चे के शव को पोस्टमार्टम के बाहर करीब एक घंटे तक हाथ में लिये परिजन खड़े रहे। इधर, मत्स्यगंधा के पास किराए के मकान में रहने वाले दिलीप ठाकुर के पुत्र आयुष की मौत आए आंधी-तूफान से हो गयी थी। बच्चे को इलाज के लिए परिजन अस्पताल ले गये थे, जहां उसकी मौत हो गयी। परिजनों के मुताबिक, अस्पताल में शव वाहन मौजूद था, लेकिन आयुष के परिजनों को ना तो शव वाहन उपलब्ध कराया गया और ना ही पोस्टमार्टम रूम तक शव ले जाने के लिए स्ट्रेचर ही दिया गया।

ओडिसा में साइकिल से ले जाना पड़ा था शव : इससे पहले जनवरी महीने में ओडिशा से एक ऐसी तस्वीर सामने आई थी, जिसमें मृतक का परिजन साइकिल से शव को लेकर जा रहा था। 17 साल के एक किशोर को अपनी मां का शव साइकिल से ले जाना पड़ा, क्योंकि वह नीची जाति से है और इस कारण किसी गांववासी ने उसकी मदद करने से मना कर दिया। अमानवीयता की हदें पार करती यह घटना ओडिशा के कर्पबहल गांव की है। ओडिशा में ही कृष्णपाली गांव में हुई, जहां 60 साल के चतुरभुजा बांका को अपनी साली पंचा महाकुड (40) के शव को अपनी साइकिल से बांधकर श्मशान घाट तक ले जाना पड़ा।

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