भाई-बहन के अटूट प्रेम पर बनी है मंदिर, रक्षाबंधन पर पूजा करने के लिए उमड़ती है भीड़

पटना : भाई और बहन के अटूट प्रेम का त्योहार रक्षाबंधन 15 अगस्त को है। त्योहार में अब केवल एक दिन बचे हैं। ऐसे में भाई और बहन के प्रेम से जुड़ी कहानियों का जिक्र सामने आ रहा है। ऐसी ही एक अमर कहानी सीवान के भाई-बहन की है, जिनके नाम पर बकायदा मंदिर भी बना है। जी हां, बिहार के सीवान जिले में भाई-बहन के प्रेम की पूजा के लिए एक मंदिर है, जहां रक्षाबंधन के दिन लोग जुटते हैं। भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में यहां स्थित एक पेड़ में राखी बांधी जाती है। बहनें यहां राखी चढ़ाकर भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है।. दरौंदा प्रखंड के भीखाबांध गांव स्थित यह मंदिर ‘भैया-बहनी’ के नाम से जाना जाता है। यूं तो सालों भर यहां श्रद्धालु पूजा कर मन्नतें मांगते हैं पर श्रावण, पूर्णिमा और भाद्र शुक्ल पक्ष अनंत चतुर्दशी के दिन सीवान, सारण, गोपालगंज, पश्चिमी और पूर्वी चंपारण, पटना आदि जिलों के अलावा और झारखंड से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं और मन्नते मांगते हैं।

क्या है इस मंदिर और इन भाई-बहनों की कहानी : लोक कथाओं के अनुसार मुगल शासनकाल में एक शख्स अपनी बहन की रक्षा के दो दिन पूर्व उसकी ससुराल भभुआ से विदा कराकर घर ले जा रहा था। भीखाबांध के पास मुगल सैनिकों की नजर उन पर पड़ी और मुगल सिपाहियों की नीयत खराब हो गई। वे डोली को रोककर बहन के साथ बदतमीजी करने लगे। इसके बाद मुगल सिपाहियों से बहन को विदा कराकर आ रहा भाई भिड़ गया। सिपाहियों की संख्या अधिक होने के कारण भाई अकेला और कमजोर पड़ गया। मुगल सिपाहियों ने उसे मार डाला। बहन खुद को असहाय देख कर भगवान को पुकारने लगी। कहा जाता है कि अचानक धरती फटी और दोनों धरती के अंदर चले गए। डोली लेकर चल रहे चारो कहार भी बगल के कुएं में कूद कर अपनी जानें दे दी थीं। कहते हैं कि जहां भाई-बहन धरती में समाए थे। वहीं दो बरगद के पेड़ उग आए। दोनों वट वृक्ष ऐसे हैं कि देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि भाई अपनी बहन की रक्षा कर रहा है। वटवृक्ष अब करीब पांच बीघा जमीन में फैल गया है।

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