पाटलिपुत्रा लोक सभा सीट पर दिलचस्प हुआ मुकाबला, चच्चा रामकृपाल पर भारी पड़ रही मीसा भारती

सातवें चरण में बिहार में जिन आठ सीटों पर मुकाबला है उनमें एक हॉट सीट है पाटलिपुत्र सीट। अंतिम चरण में 19 मई को मतदान होगा। यहां एक बार फिर चचा रामकृपाल यादव और भतीजी मीसा भारती के बीच होगा दिलचस्प मुकाबला जिस पर पूरे देश की नजर होगी। यह लड़ाई इसलिए भी दिलचस्प है कि रामकृपाल एक समय लालू की नाक के बाल थे। वे राजद के टिकट पर बिहार के विधान परिषद के सदस्य रहे। फिर तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे और एक बार राजद के टिकट पर राज्यसभा सांसद भी बने।

2014 के लोकसभा चुनाव में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने जब अपने बेहद करीबी रहे रामकृपाल यादव को पाटलिपुत्र सीट से टिकट न देकर अपनी मीसा बिटिया को थमा दिया तो बिफर कर रामकृपाल यादव बीजेपी से जा मिले। एनडीए से उन्हें पाटलिपुत्र सीट से उम्मीदवार बनाया गया और तब पहली बार चचा-भतीजी में भिड़त हुई। चचा जीत गये और भतीजी हार गई। रामकृपाल यादव जीते तो सही मगर हार-जीत का अंतर महज 41 हजार वोटों का ही था। वैसे 2019 के चुनाव में रामकृपाल यादव के लिए फायदे की बात यह है कि इस बार जदयू एनडीए में है इसलिए उसका करीब 97 हजार वोट भी उन्हें ट्रांसफर हो सकता है। मुकाबला दिलचस्प होने की एक प्रमुख वजह यह भी है कि इस बार महागठबंधन का भी समीकरण भी बदल चुका है। कांग्रेस के साथ महागठबंधन में राजद को भाकपा माले का भी साथ मिला है। इस बार माले ने पाटलिपुत्र सीट पर उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है जिससे मीसा भारती को राहत मिलेगी। 2014 के चुनाव में माले प्रत्याशी को 51 हजार वोट मिले थे। पिछली बार महज 41 हजार वोट से मीसा हारी थी लिहाजा उसके खाते में माले का भी 51 हजार वोट जुड़ जायेगा।

पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र की जातीय संरचना की बात करें तो पाटलीपुत्र लोकसभा सीट यादव बहुल इलाका है। यहां 5 लाख यादव, साढ़े चार लाख भूमिहार, 3 लाख राजपूत और कुर्मी और डेढ़ लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौठी, पालीगंज और विक्रम जैसे क्षेत्र आते हैं। इसमें से फुलवारी और मसौढ़ी सुरक्षित क्षेत्र हैं। इन विधानसभा क्षेत्रों में मनेर, मसौठी और पाली पर राजद का, दानापुर पर बीजेपी का, फुलवारी पर जदयू और विक्रम पर कांग्रेस का कब्जा है। अर्थात 6 विधानसभा में से चार पर महागठबंधन और दो पर एनडीए का कब्जा है। यही वजह है कि 2014 की मोदी लहर में भी महज 41 हजार से जीतने वाले रामकृपाल यादव के लिए मीसा यादव इस बार और भी बड़ी चुनौती चुनौती बनी हुई हैं। उनके लिए प्रचार करने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आना पड़ा। इस बार के कांटेदार मुकाबले में क्या भतीजी चाचा जी को हरा कर पिछली हार का बदला ले सकेगी? इस सीट पर सारे देश की नजर है।

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