एक सिनेमा ऐसा भी…ना कोई गाना ना ही इंटरवल, 20 दिन में बनकर तैयार हो गई थी राजेश खन्ना की ये फिल्म

ज़िंदगी में इत्तेफाक भी हुआ ही करते हैं| लगातार ढलाई पर फिसलती जा रही ज़िंदगी की गाडी किसी इत्तेफाक से ऊपर की ओर चढ़ाई चढ़ने लग जाती है और लगातार आसमान में उड़ रही ज़िंदगी की पतंग की डोर किसी इत्तेफाक से कट जाती है और ज़िंदगी कटी पतंग और शाख से टूटे सूखे पत्ते की तरह दिशाहीन भटकने लग जाती है|

ना कोई गाना ना ही इंटरवल, 20 दिन में बनकर तैयार हो गई थी राजेश खन्ना की ये फिल्म, पौने दो घंटे की इस फिल्म का हर मिनट है सस्पेंस से भरा

मुलजिम कानूनी गिरफ्त से भागकर एक घर में शरण ले ले तो यह एक इत्तेफाक ही है, और उस बड़े से घर में एक अकेली स्त्री ही उपस्थित है यह भी महज एक इत्तेफाक ही है| क़ानून से भागा पुरुष एक अकेली स्त्री को अपने नियंत्रण में कर ही लेगा इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं होगी| स्त्री की असहायता से दर्शक चाहेंगे कि जल्दी कुछ हो जिससे परदे पर सब कुछ सामन्य हो जाए| कानूनी पकड़ से भागे पुरुष ने खून किया या नहीं यह पता लगे और वह किसे और कब इस स्त्री को मुक्त कर देगा यह देखने को मिले|

बॉलीवुड में हर साल बहुत सारी फिल्में बनती हैं, जिसमे डायलोग और बाकी फिल्म की बजाए गाना ज्यादा होते हैं। जिसकी वजह से लोगों को फिल्म देखने में जो मजा बना होता है वो अचानक से खराब हो जाता है। लेकिन आज से 55 साल पहले एक ऐसी बिना ब्रेक वाली फिल्म भी आई थी, जिसमे कोई गाना नहीं था।इस फिल्म का नाम था ‘इत्तेफाक’, जो कि साल 1969 में सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी।

‘इत्तेफाक’ में राजेश खन्ना, नंदा, बिंदु, सुजीत कुमार और मदन पुरी सहित कई कलाकार मुख्य भूमिका में थे। यह बॉलीवुड की वह फिल्म की जो सिर्फ 20 दिनों में बनकर तैयार हो गई थी. इत्तेफाक की कहानी को सिर्फ सात दिनों में लिख दिया गया था। इत्तेफाक बॉलीवुड की उन फिल्मों में से एक जिसमें एक भी गाना नहीं है। इतना ही नहीं यह बॉलीवुड की पहली फिल्म है, जिसमें इंटरवल नहीं था। पौने दो घंटे की इस फिल्म में शुरू से लेकर आखिरी तक सस्पेंस और थ्रिलर से भरी हुई है।

मुख्यतः एक ही रात की कथा के तौर पर इत्तेफाक एक आकर्षक थ्रिलर रहा है| पहली पहली बार इसके दर्शन कर पाने वाले दर्शकों में कम ही होंगे जिन्हें ये पसंद न आये|

बड़ी समस्याओं से घिरे चित्रकार के रूप में राजेश खन्ना और रहस्यमयी नायिका के रूप में नंदा के अपने अपने व्यक्तित्व उन्हें मिले चरित्रों पर सटीक बैठते हैं| नंदा ने इससे पहले सरल नायिका या सह नायिकाओं की भूमिकाएं ही निभाई थीं अतः इस ग्लैमर से भरपूर चरित्र में उनकी उपस्थिति दर्शकों के दिमाग से खेलती है और उन्हें पहले से कुछ सोचकर फ़िल्म के बहते कथानक से आगे निकलने नहीं देती|

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