हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- जाति जन्म से ही तय होती है, शादी से नहीं

एससी में जन्मी महिला शादी के बाद ईसाई नहीं बन जाती

मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति की जाति जन्म से तय हाेती है। यह विवाह के आधार पर नहीं बदलती। एससी-एसटी एक्ट के तहत मुअावजे का दावा खारिज करने संबंधी डिंडिगुल जिला मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ एक महिला की याचिका पर हाईकाेर्ट ने यह फैसला दिया। मारपीट, दुर्व्यवहार, जातिसूचक शब्द कहने के मामले में पीड़िता की मुअावजे की मांग खारिज करते हुए जिला मजिस्ट्रेट ने कहा था कि उसका पति ईसाई है। इसलिए वह मुअावजे की हकदार नहीं है। हाईकोर्ट ने यह आदेश खारिज करते हुए जिला मजिस्ट्रेट काे छह सप्ताह के भीतर डेढ़ लाख रु. मुआवजा देने को कहा है।

कोर्ट ने कहा कि पति के ईसाई धर्म का पालन करने का मतलब यह नहीं कि पत्नी खुद-ब-खुद ईसाई हो जाएगी। साफ है कि महिला काे मुअावजे से वंचित रखने के लिए कलेक्टर ने एेसा रुख अपनाया है।


कोर्ट ने कहा-अनुसूचित जाति में जन्मी महिला शादी करके ईसाई नहीं बन जाती। उसे मूल जाति के लाभ से वंचित नहीं कर सकते।alt39जस्टिस एन आनंद वेंकटेश की बेंच ने कहा कि यह मामला उन अभाव, आक्रोश और अपमान की वास्तविक परीक्षा है, जाे दलित समुदाय के सदस्यों ने झेले हैं। दूसरे धर्म या जाति के व्यक्ति से शादी या धर्म परिवर्तन को उस व्यक्ति के खिलाफ नहीं रखा जा सकता जो अनुसूचित जाति में पैदा हुआ है।

मद्रास हाईकाेर्ट ने कहा कि डिंडिगुल जिला मजिस्ट्रेट ने एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 2016 के नियम 12 (4) के तहत याचिकाकर्ता महिला को इस आधार पर मुआवजा देने से इनकार कर दिया कि उसका पति ईसाई है। इसका यह मतलब नहीं हाेता कि उसकी पत्नी भी ईसाई हो गई। जबकि, पुलिस की रिपोर्ट में भी उसे अनुसूचित जाति से संबंधित बताया गया है।

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