रिजर्व बैंक में अर्थशास्त्रियों की भगदड़ क्यों मची है?
PATNA : विरल आचार्य ने भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले उर्जित पटेल ने आरबीआई गवर्नर का पद छोड़ दिया था। पटेल ने भी कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ा था, अब विरल आचार्य भी कार्यकाल पूरा होने के छह महीने पहले ही पद छोड़ गए। आरबीआई जैसी सर्वोच्च संस्था में काम करने वाले अर्थशास्त्रियों में किस तरह का डर है? सात महीने में दूसरा झटका लगा है।
विरल आचार्य के पद छोड़ने के दो दिन पहले ही आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास का बयान आया जो उन्होंने मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में दिया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी रफ्तार खो रही है। इसकी वृद्धि के लिए एक निर्णायक मौद्रिक नीति की जरूरत है। अब जब एक के बाद एक अर्थशास्त्री मोदी सरकार के साथ काम करने से भाग रहा है तो मौद्रिक नीति कौन बनाएगा?
मोदी सरकार के पिछले पांच वर्षों में पांच अर्थशास्त्री सरकार का साथ छोड़कर भाग चुके हैं। कुछ ने सरकार से टकराव के कारण पद छोड़े तो कुछ ने निजी कारणों का हवाला दिया। पहले जून 2017 अरविंद पनगढ़िया ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष का पद छोड़ा। फिर प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य सुरजीत भल्ला ने पद छोड़ा। फिर भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने इस्तीफा दे दिया। फिर आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया।
नोटबंदी जैसे मनमाने फैसले के बाद आरबीआई की जो छीछालेदर हुई, उर्जित पटेल और दूसरे अर्थशास्त्रियों को जितनी फजीहत उठानी पड़ी, उसके बाद यह उचित प्रतिक्रिया ही है कि अर्थशास्त्री सरकार से दूर भाग रहे हैं। डेढ़ आदमी की सरकार का रवैया ऐसा है कि वह किसी की विशेषज्ञता की जगह अपने अहंकार को तवज्जो देती है। नई सरकार तो बन गई है लेकिन शक्तिकांत दास की असली चिंता पर सरकार मौन है।
सिर्फ अर्थशास्त्रियों का ही यह हाल नहीं है। बीती जनवरी में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों- पीसी मोहनन और जेवी मीनाक्षी ने इस्तीफा दे दिया था कि सरकार आंकड़ों के मामले में हस्तक्षेप कर रही है। दोनों सदस्यों के इस्तीफे के पीछे लेबर फोर्स सर्वे में देरी और जीडीपी के बैक-सीरीज आंकड़ों पर असहमति को कारण बताया गया था।
गिरती अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्रियों के लिए एक चुनौती होती है। यह ऐसा समय होता है जब कोई अर्थशास्त्री अपनी विशेषज्ञता को दांव पर लगाकर अर्थव्यवस्था को सुधारना चाहेगा। लेकिन यहां अर्थशास्त्री चुनौती स्वीकार करने की जगह भाग रहे हैं। क्या सरकार ने आरबीआई की स्वायत्तता खत्म करके अर्थशास्त्रियों को पंगु बना दिया है?
लेखक : कृष्णकांत, वरिष्ठ पत्रकार
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