‘फिर झूठ बोल गए PM मोदी, जब हर 10 साल पर जनगणना होती है, तो 1 साल पहले यह NPR क्या तमाशा है?
कृष्णकांत
जब हर दस साल पर जनगणना होती है, जब 2021 में जनगणना होनी है तो एक साल पहले यह विशेष जनगणना क्या तमाशा है?
सीएए और एनआरसी की चर्चाओं के बीच एक नया शगूफा आया है एनपीआर. आज राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी NPR को अपडेट करने के लिए मंजूरी दी गई है.
केंद्रीय प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि अप्रैल से सितंबर 2020 तक जनगणना होगी. जनगणना में किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी. जो भी भारत में रहता है. उसकी गणना होगी. इसके लिए एक विशेष ऐप तैयार किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि एनपीआर की प्रक्रिया में लोगों को अपने माता पिता का जन्मस्थान और तिथि बतानी होगी, इसके अलावा इसमें 21 बिंदुओं पर सूचनाएं मांगी जाएंगी.
ये सूचनाएं बिना किसी दस्तावेज के कैसे दर्ज की जाएंगी? 1970-80 से पहले जन्मे कितने लोग हैं जिनके माता पिता के जन्म के प्रमाणपत्र मौजूद हैं? कहा जा रहा है कि एनपीआर को आगे चलकर एनआरसी से जोड़ा जाएगा. बंगाल और केरल ने इस पर रोक लगा दी है.
सरकार कह रही है कि यह एक विशेष जनगणना है. जब 2021 में जनगणना होनी ही है तो यह विशेष जनगणना क्या बला है और किस मकसद से लाई गई है, जिसके लिए 8500 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है?
एक्सप्रेस लिख रहा है कि एनपीआर में माता पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले आवास का पता, पैन नंबर, आधार नंबर, वोटर आईडी नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर और मोबाइल नंबर लिया जाएगा. प्रकाश जावड़ेकर कह रहे हैं कि कोई दस्तावेज नहीं लिया जाएगा.
निर्णय के तुरंत बाद इतने तरह की सूचनाओं में से आप किसे सही मानेंगे?
पहले कैब जो सीएए बना, फिर एनआरसी की चर्चा और अब एनपीआर, ये सब मिलाकर एक ऐसे झूठ, अराजकता और तबाही की स्थापना करेंगे जिसकी आपने कल्पना नहीं की होगी, जैसा कि नोटबंदी के दौरान हुआ था.
इन योजनाओं का मॉडस ऑपरेंडी यानी तरीका नोटबंदी जैसा है. एक हफ्ते में एक हजार नियम बताए गए हैं. यह नोटबंदी वाले ऐतिहासिक झूठ ही का विस्तार है, जिसके निशाने पर नागरिकों की नागरिकता है.
नुकसान क्या होगा, कितना होगा, कोई नहीं जानता, जैसे नोटबंदी के बारे में हम सबको कुछ पता नहीं था. अब पता चला कि पूरी अर्थव्यवस्था ढह चुकी है और बेरोजगारी 45 साल के चरम पर है’