8 साल से बिहार की नवरूणा हत्याकांड की जांच कर रही है CBI, आज तक नहीं मिला इंसाफ, DGP सर कुछ कीजिए
आठ साल से मुजफ्फरपुर के नवरूणा चक्रवर्ती केस की जांच CBI कर रही है लेकिन कोई न्याय नहीं मिला अभी तक, उम्मीद करते हैं सुशांत सिंह राजपूत को मिल जाए!
आज बिहार के DGP गुप्तेश्वर पांडे जी मीडिया के समाने लंबा लंबा बयान दे रहे थे, लेकिन उस समय उस केस मे CBI ने तत्कालीन IG और वर्तमान DGP गुप्तेश्वर पांडे की संदेहास्पद संलिप्तता की जाँच की थी, काहे गुप्तेश्वर पांडे जी उस वक्त नवरूणा केस मे आपका टैलेंट कहा खो गया था, क्यू नवरुणा कोई स्टार नहीं थी आपको TRP नहीं मिलती इसलिए?
एक थी नवरुण
18 सितम्बर 2012 की रात जवाहरलाल रोड,मुजफ्फरपुर , बिहार में 12 साल की नवरुणा अपने घर में सो रही थी। उसके पिता अतुल्य चक्रवर्ती के अनुसार उस दिन उसने पहली बार मेहँदी लगायी थी और उसको ख़राब नहीं करना चाहती थी। इसलिए माँ बाप के साथ सोने के बजाय वो अकेले एक कमरे में सोने गयी। उस रात बारिश हो रही थी। रात को तीन लोग खिड़की तोड़कर उसके कमरे में घुसे और उसको बेहोश कर चादर में लपेट कर उठा कर ले गए। पिता ने बाद में बताया की उस रात तीन लोगों को सामने देख बहुत दर गयी होगी नवरुणा। उसका बिस्तर गीला था।
नवरुणा अपनी उम्र के बच्चों जैसी ही थी।घरवाले प्यार से ‘सोना’ बुलाते थे। गली के कुत्तों को खाना खिलाती थी और वो उसके स्कूल से आने का इंतजार करते थे।
बताते हैं की कुछ लोग उसके पिता से 140 साल पुराना शहर के पॉश इलाके में स्थित वो घर खरीदना चाहते थे। पिता बेचने को तैयार नहीं थे। नवरुणा का अपहरण उन्हें डराने के लिए किया गया। 19 सितम्बर को पिता ने पुलिस स्टेशन में कैसे दर्ज कराया। नवरुणा की बड़ी बहन नवरूपा जो दिल्ली में रहकर पढ़ती थी, ने सोशल मीडिया में #SaveNavruna कैम्पेन भी चलाया। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मानवाधिकार आयोग सब दरवाजा खटखटाया। 26 नवंबर 2012 को घर के पास एक ड्रेन से बिना सिर का कंकाल मिला। पुलिस ने बताया की वो नवरुणा ही है पर परिवार नहीं माना।
12 जनवरी 2013 को सीआईडी को केस सौंपा गया। घटना के 40 दिन बाद उस वक़्त के एडीजीपी और वर्तमान में डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय उसके परिवार से मिलने पहुंचे। 45 दिन बाद फॉरेंसिक की टीम पहुंची। जांच चलती रही केस चलता रहा।
परिवार दो बार नीतीश कुमार से मिला और आग्रह किया की केस सीबीआई को दे दिया जाये। एक अपील सुप्रीम कोर्ट में भी की। अपनी उस अपील में अमूल्य चक्रवर्ती ने 11 लोगों का नाम दिया जिसमे कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी थे। अमूल्य ने कहा की उन्हें इन सब लोगों के अपहरण में शामिल होने पर शक है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने फ़रवरी 2014 को केस में जांच शुरू की। 20 अगस्त 2014 को सीबीआई ने डीएनए टेस्ट के आधार पर ये कहा की वो कंकाल नवरुणा ही है। पर पिता के अनुसार उन्हें रिपोर्ट नहीं मिली है। वो कहते हैं की ये कंकाल किसी 50-55 साल की महिला का है।
केस के बारे में सूचना देने वाले को 10 लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया गया। पर नतीजा कुछ भी नहीं। कुछ लोगों को शक के आधार पर गिरफ्तार भी किया गया पर सब जमानत पर छूट गए। पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने 10 मार्च 2020 तक जांच पूरी करने का आदेश दिया था। दसवीं बार छः महीने के लिया एक्सटेंशन दिया गया है
नवरुणा केस देश की प्रीमियर जांच एजेंसी और बिहार पुलिस की विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। जी हाँ वही बिहार पुलिस जो मुंबई में सुशांत सिंह राजपूत का केस सोल्व करने पहुंची थी । नवरुणा कोई बड़ा स्टार नहीं थी और नहीं उसके लिए प्राइड ऑफ़ बिहार जैसा कोई शब्द इस्तेमाल किया गया। सुशांत सिंह राजपूत से टीआरपी आती है और चुनाव भी हैं। बिहार सरकार ने पैरवी के लिया बड़ा वकील रखा है। मुझे नवरुणा और सुशांत सिंह राजपूत, दोनों के पिता से सहानुभूति है और चाहता हूँ दोनों केस सोल्व हों। हर बच्चा अपने माँ बाप के लिया स्टार होता है। कोई यूहीं अपने बच्चे का नाम ‘सोना’ नहीं रखता।
नोट: पत्रकार कुमार अंशुमान का यह पोस्ट है जो उन्होंने ट्विटर पर डाला है। आशय यही है कि हम हर घटना को मीडिया के ज़रिये लड़ते हुए उसे डिबेट में बदलते हैं और वहाँ से नौटंकी का रूप लेने लगता है जिसमें हर कोई अपना चेहरा चमकाने लगता है। जनता की सक्रियता स्वाभाविक है। वो क्या करें। उसे लगता है कि चर्चा होने से पुलिस जाँच करेगी और इंसाफ़ होगा। पर ऐसा कहाँ होता है । इसलिए कुमार अंशुमान ने एक ऐसी ही घटना की याद दिलाई है जिसकी जाँच को लेकर इसी तरह का तूफ़ान उठा था मगर क्या हुआ ?