धारा 370 पर चुप्प रहे नेहरू के मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी, विरोध बस मौलाना मोहानी ने किया था

PATNA : जब संविधान सभा में 370 (तब 306-ए) पास हुई तो श्यामाप्रसाद मुखर्जी मंत्रिमंडल में थे। विरोध बस मौलाना हसरत मोहानी ने किया, मुखर्जी कुछ नहीं बोले। पटेल भी नहीं। पटेल के ख़ास आयंगर साहब ने मौलाना से कहा कि 370 तोड़ने वाली नहीं जोड़ने वाली धारा है जब पाकिस्तान से सीज़ फ़ायर हुआ और सीज़ फ़ायर रेखा बनी (यही शिमला समझौते के बाद नियंत्रण रेखा कहलाई) तो भी मुखर्जी साहब और आदरणीय पटेल जी मंत्रिमंडल में थे। किसी ने विरोध नहीं किया। पटेल उसके ठीक पहले अयंगर को पत्र में लिख रहे थे कि युद्ध का ख़र्च उठाना मुश्किल हो रहा है। ख़ज़ाना ख़ाली हो रहा।

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जब मामला यू एन में गया तब भी मुखर्जी साहब और पटेल साहब मंत्रिमंडल में थे। कोई विरोध नहीं हुआ। तथागत रॉय (त्रिपुरा के राज्यपाल) ने मुखर्जी की जीवनी में उन्हें यू एन वाले निर्णय पर चुप्पी को जस्टिफाई करते कोट किया है।
लेकिन हर चीज़ के ज़िम्मेदार सिर्फ़ नेहरू थे।

क्या है धारा 370- भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है। धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद यानी धारा है, जो जम्मू-कश्मीर को भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार प्रदान करती है। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था।

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सरदार पटेल कह गए कि कश्मीर मुद्दे पर उनका नेहरु से कोई मतभेद नहीं 

कैसे हुआ भारत में विलय- 1947 में विभाजन के समय जब जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई तब जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। इसी दौरान तभी पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने वहां आक्रमण कर दिया जिसके बाद बाद उन्होंने भारत में विलय के लिए सहमति दी।

कैसे बनी थी धारा 370- उस समय की आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करने का समय नहीं था। इसलिए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया। यही बाद में धारा 370 बनी। जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले हैं।

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