नीतीश सुशासन का सच, मरने के बाद लवारिश शव को कफन नसीब नहीं होता, पोस्टमार्टम के बाद पैसे की लूट

PATNA : बिहार में लावारिश श-वों के अंतिम संस्कार के लिए कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। कई जगहों पर अमानवीय तरीके से इनका निपटारा किया जा रहा है। पैसे के अभाव में राज्य के सभी 38 जिलों में ऐसी लाशों को कफन तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है। सरकारी दिशा-निर्देश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन इसकी मॉनिटरिंग करने वाला कोई नहीं है।

स्वास्थ्य विभाग एवं पुलिस प्रशासन के बीच फंसी पूरी प्रक्रिया के बीच मानवीय पहलू की अनदेखी हो रही है। कहीं सड़ी-गली लाशों को एकत्र कर एक साथ सबका निबटारा किया जाता है, तो कहीं इन्हें गंगा या अन्य नदियों में बहा दिया जाता है। कहीं, लाशों के ढेर पर पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी जाती है। नियमानुसार लावारिस लाश को पहचान के लिए 72 घंटे तक सुरक्षित रखे जाने के बाद ही उसका अंतिम संस्कार कराना है।

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शव को बिना दाह संस्कार किए कहीं भी फेंक दिया जाता है

अधिकतर अस्पतालों में श-वों को 72 घंटे सुरक्षित रखने का कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है। मुजफ्फरपुर में नर कंकाल मिलने के बाद स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचा है। हालांकि एसकेएमसीएच के प्राचार्य डॉ. विकास कुमार ने कहा कि टीम गठित कर पूरे मामले की जांच कराई जा रही है। पुलिस प्रशासन द्वारा दाह संस्कार में कम राशि की दलील दी जाती है। एसकेएमसीएच में दो हजार, दरभंगा मेडिकल कॉलेज और पीएमसीएच में एक-एक हजार तो गया मेडिकल कॉलेज में तीन हजार रुपये प्रति लाश दिए जाते हैं। मधुबनी जिला अस्पताल में प्रति माह दस तो पीएमसीएच में औसतन 30 लाशें आती हैं। मगध मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉ. विजय कृष्ण प्रसाद ने बताया कि पिछले तीन माह में 13 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार थाने के सहयोग से कराया गया है।

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शव को बिना दाह संस्कार किए कहीं भी फेंक दिया जाता है

विकास कुमार, एसपी, भागलपुर का कहना है कि अज्ञात श-व का अंतिम संस्कार किसी संस्था या नगर निगम के सहयोग से कराया जाता है। -डॉ. राजीव रंजन प्रसाद, अधीक्षक, पीएमसीएच कहते हैं कि लावारिस लाशों का अन्य श-वों के जैसा ही अंतिम संस्कार किया जाता है।

अज्ञात श-वों के दाह संस्कार के लिए रोगी कल्याण समिति द्वारा दी जाने वाली राशि से कफन, फूल माला, लकड़ी एवं अन्य सामग्री खरीदी जाती है। इसी में श-वदाह गृह का शुल्क भी शामिल होता है। जहां श-वदाह गृह नहीं है, वहां पारंपरिक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना है। वैसे कितनी राशि दी जाए, यह तय नहीं है। स्थानीय परस्थिति के हिसाब से राशि दी जाती है। अंतिम संस्कार को लेकर पुलिस और अस्पताल प्रशासन की संयुक्त रूप से जम्मेवारी होती है। अंतिम संस्कार में नगर निगम या नगरपालिका का प्रमाण पत्र जरूरी होता है।

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