बिहार के यशवंत सिन्हा होंगे देश के अगले राष्ट्रपति?, विपक्ष ने बनाया अपना उम्मीदवार

राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा होंगे संयुक्त उम्मीदवार, विपक्ष की बैठक में लिया गया फैसला : पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी माने जाने वाले यशवंत सिन्हा को सर्वसम्मति से विपक्षी पार्टियों द्वारा मंगलवार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुशी जाहिर करते हुए उन्हें बधाई दी। ममता ने सिन्हा को एक कुशाग्र बुद्धि का राजनेता बताते हुए कहा कि वह निश्चित रूप से हमारे महान राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले मूल्यों को बनाए रखेंगे।

नौकरशाह से राजनेता बने यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में सर्वसम्मति से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। 1993 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने यशवंत सिन्हा के भाजपा में शामिल होने की घोषणा करते हुए एक संवाददाता सम्मेलन में इसे पार्टी के लिए “दिवाली उपहार” कहा था।

लाल कृष्ण आडवाणी के बेहद करीबी माने जाने वाले यशवंत सिन्हा 1998 से 2004 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में प्रतिष्ठित वित्त और विदेश मंत्रालयों का नेतृत्व किया। इस बीच उन्होंने नरेंद्र मोदी की उभार के बाद बगावत करते हुए भाजपा छोड़ दी और अपनी राजनीतिक प्रोफ़ाइल को नया रूप दिया। पूर्व नौकरशाह ने तब से लेकर अब तक एक लंबी दूरी तय की है।

विपक्षी दलों के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में भाजपा और उसके सहयोगियों से यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की अपील की “ताकि हम एक योग्य ‘राष्ट्रपति’ को निर्विरोध निर्वाचित कर सकें।”

6 नवंबर 1937 को जन्मे सिन्हा ने पटना में स्कूल और विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। 1958 में, उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में परास्नातक पूरा किया और 1958 से 1960 तक अपने ही महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाया। 1960 में वह भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल हुए और अपने 24 साल के कार्यकाल के दौरान कई पदों पर रहे।

सिन्हा ने 1984 में आईएएस से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए। 1986 में उन्हें अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में राज्यसभा के लिए चुने गए।

जब वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल का गठन हुआ, तो सिन्हा को इसका महासचिव बनाया गया। उन्होंने नवंबर 1990 से जून 1991 तक चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री के रूप में काम किया, जिन्होंने जनता दल को विभाजित किया और समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया। सिन्हा जून 1996 में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने और मार्च 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रीमंडल फिर से वित्त मंत्री बनाए गए।

वह झारखंड में अपने संसदीय क्षेत्र हजारीबाग से लोकसभा चुनाव लड़ते थे। 2014 में, भाजपा ने उनकी जगह उनके बड़े बेटे जयंत को वहां से मैदान में उतारा था। इसके बाद 2018 में यशवंत सिन्हा ने सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी, लेकिन 2021 में, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, वह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए और पार्टी के उपाध्यक्ष बने।

मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस से अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए सिन्हा ने ट्वीट किया, “मैं ममता जी का आभारी हूं कि उन्होंने तृणमूल कांग्रेस में मुझे जो सम्मान और प्रतिष्ठा दिया। अब समय आ गया है जब बड़े राष्ट्रीय हित के लिए मुझे पार्टी से हटकर अधिक विपक्षी एकता के लिए काम करना होगा। मुझे यकीन है कि वह इस कदम को स्वीकार करेंगी।”

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