बिखरी जुल्फों वाले कलाम को देश का सलाम..!आज ही वो काली तारीख है जब वो हमें छोड़ के गए थे

मौत ऐसी की मन ललचाए,ज़िन्दगी ऐसी की मिसाल बन जाए । एक इंसान,जिसका प्रारम्भ से अंत तक सब ऐसा,जैसे किसी ने बहुत सलीके से बुना हो,जैसे कोई महान इंसान को बनाने के सारे तत्व एक जगह,एक जिस्म में करीने से पिरो दिए गए हों । यही तो थे मेरे कलाम । आपको अब याद ही कर सकते हैं ।

कई दिन से कुछ भी लिखने का खास मन ही नही कर रहा,मन उचाट सा है,रह रह के आपकी ही याद आ रही थी। रह रह के भविष्य की धुँधली तस्वीर मन को बेचैन किये हैं । सबको याद है,यही 27 जुलाई थी की आप एक झटके में हमे छोड़ गए । वह नज़ारा जितना दर्दनाक था उतना ही खूबसूरत भी,भला मौत कब हमे हमारी मर्ज़ी की मिली है, आपतो चाहते ही थे कि आखरी साँस विद्यार्थियों के बीच लें और ईश्वर ने जैसे आपके लिए करीने से मौत के दरे ख़ुद बिछाए हों,जहाँ से आहिस्ता से वह आपको बुला ले और मुस्कुराते हुए आप चल दें और हम सब भीगी आँखों से यह सफर देखते रह जाए ।

जब आपसे मिला था तो यक़ीन नही था की उन यादों को इतनी बार लिखना कहना पड़ेगा।मेरे पास कुछ नही है की मैं आप पर बड़े बड़े प्रोग्राम कर पाऊँ।मैं सिसक कर रहा जा रहा हूँ की आज मेरे सबसे बड़े अध्याय की पुण्यतिथि है मगर मैं खुद उसको याद नही कर पा रहा हूँ।गुज़री रात आपके तस्वीर के साथ गुज़री थी।इतनी बार उसपर हाथ फेरा था की उंगलियो को आपके उलझे बाल महसूस होने लगे थे।

मैं पिछले कई दिन से आपसे मिलता रहा हूँ।आपकी छोटी छोटी आँखे मुझे बड़ा परेशान करती हैं।जब मैं कहता हूँ की कुछ नही हो सकता हैं तब आप सख्त हो जाते हैं।मुझे कामचोर कह कर डाँटते हैं।मैं फिर खड़ा हो जाता हूँ।कलाम साहब,नही नही मेरे कलाम,आज आपको सब याद करेंगे।इस याद के सिलसिले में मुझ गरीब की याद बड़ी मामूली सी,फीकी सी है।लेकिन हमे पता है आप सारा लावलश्कर छोड़कर मेरी यादों में ही आएँगे।डॉक्टर साहब मैं कह नही सकता आप महसूस तो कर ही रहे होंगे की हमे क्या चाहिए।आपके जाने के बाद हम सब बेहद अकेले हो गए हैं।इस अकेलेपन ने हमे अक्खड़ और बदतमीज़ बना दिया है।आज जब आप मेरे पास आइयेगा तो हमे बताइयेगा दिल मासूम कैसे होता है।हमे मिज़ाइल नही जाननी, हमे बताइयेगा मोहब्बत कैसे होती है।

हमे उड़ने की नही पहले चलने की ट्रेनिंग दीजियेगा।आपका 2020 के भारत का सपना धुन्धला न हो इसलिए हम सब लाइन लगाएं खड़े हैं।इन खड़े लोगों को एक साथ मोहब्बत से खड़े होने की दुआ दीजिये कलाम।कलाम मैं, हाँ मैं, बिलकुल अकेला,टुटा हुआ हूँ।बस एक आप हैं जो ऊपर से मुझे जोड़े हुए हैं।आखरी बात या तो वापिस आ जाइये नही तो हमे बुला लीजिये।मुझपर 27 जुलाई कयामत की तरह गुज़रती है।मैं बर्दाश्त नही कर पाता हूँ यह दिन। मुझे जीने नही देता आपका 2020 वाला सपना,कहाँ आप और हम दुनिया को वह भारत दिखाना चाहते थे,जिसे दुनिया गर्व से देखे,कहाँ हमारी नाव फिर से हिन्दू मुसलमान की मंझदार में फंस गई हैं ।

आपके एक से एक मानने वाले देखे,कड़वे से कड़वे आलोचक भी देखे मगर यह सभी भी तो सुंदर भारत बनाने में आपके साथ थे,अब यह एक दूसरे से धर्म देखकर प्यार या नफरत करते हैं । 2020 जिसमे हमे उड़ना था,हम रेंगने लगे हैं । जो चाल हमे मिलकर तेज़ दौड़कर पार करनी थी,वह हम अब उल्टी दौड़ में शामिल हो चुके हैं । हमें भविष्य का भारत बुनना था,हम भूतकाल का भारत ढूंढने में व्यस्त हो चुके हैं । हमें आज की गलतियां सुधार कर भविष्य सुन्दर करना था । हम भूतकाल की गलतियां खोजकर आज को चकनाचूर कर रहे हैं ।

देख तो कलाम आप भी रहे होंगे । खुशी हुई कि इतने कठिन वक़्त में आप नही रहे,क्योंकि यह तक़लीफ़ आपको खोखला कर देती । न्यूज़ चैनल देखकर ही आप मर जाते । मुँह से आग उगलती ज़ुबाने देख अग्नि की उड़ान को जलाकर राख कर देते ।

आज याद तो सभी करेंगे मगर आपके रास्ते पर होगा ही कौन । अब कितने दिल बचे हैं, जिनमे राम और अल्लाह साथ रह सकें । आज तो सबसे बड़े खतरे में वही लोग हैं, जो सबकी बात करते हैं, जिनका दिल किसी एक मज़हब की डोर से नही बंधा,वह ही तो आज निशाने पर हैं । आज तो कोई मनचला आप पर भी अपने मन की गंदगी उछाल देता,जब आप बोलते की मिल जुलकर रहो, सेक्युलरिज़्म आपके मुंह से निकलता और सैकड़ो मुँह आपको भर भर कर ट्रोल कर रहे होते ।

आप जरूर मरना पसन्द करते यह सुनकर की कोई एंकर राष्ट्रीय मीडिया में प्राइम टाइम पर बैठकर खुद को कम्युनल कहे और इसपर गर्व करे । यह सब हम देख रहे हैं, यही हमारी सज़ा है कलाम और यही आपका पुण्य की मनहूस दिन देखने से पहले चले गए । बस यही प्रार्थना की यह दिन सुधरे वरना हम ही सिधार जाएँ और आपके पैतयाने बैठकर 2020 के भारत पर पेंसिल फेरते फेरते रोते रहें…नमन नही कहेंगे, क्योंकि कलाम मरा नही करते हैं, जब तक सपना अधूरा है, तब तक कलाम जा भी नही सकते….

  • हाफ़िज़ किदवई साहब ( फ़ेसबुक से साभार )

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