बिहार के जमुई के इस गाँव की बात निराली है, तीन साड़ी और 5 रुपये में विदा होती हैं बेटियां

बिहार के इन गांवों में है अनूठी परंपरा, तीन साड़ी और पांच रुपये में विदा होती हैं बेटियां : आए दिन दहेज को लेकर बिटिया असमय मौत की बलि चढ़ रही है। ऐसे में जंगली इलाके में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग सदियों से बिना दहेज शादी कर लोगों को आइना दिखा रहे हैं। भले ही आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाज सुधार यात्रा के बहाने दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं लेकिन आदिवासी समाज सदियों से बिना दहेज शादी कर लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।

हालांकि, बहुत कम लोगों को यह पता है कि आदिवासी लोग दहेज में एक रुपया भी नहीं लेते हैं। हां, अगर किसी पिता को अपनी बेटियों को अपनी स्वेच्छा से कोई सौगात देना होता है तो वे जरूर देते हैं। आदिवासी समुदाय के रामलखन मुर्मू, रायसेन किस्कू, छोटेलाल सोरेन बताते हैं कि हमारे समाज में दहेज को अपराध और नफरत माना जाता है।

आदिवासी समुदाय के अनिल मुर्मू बताते हैं कि पूर्वजों ने ही इस नियम को लागू किया था जो आज तक चल रहा है। पूर्वजों की सोच थी कि अगर दहेज प्रथा रहेगी तो किसी गरीब की बेटी की शादी कैसे होगी। आज तक उस नियम का पालन आदिवासी समाज से आने वाले लोग कर रहे हैं। इस कार्य को धरातल पर देखरेख के लिए ग्राम प्रधान, योग मांझी, पैराणिक एवं समाज के अन्य जागरूक लोग नजर रखते हैं। अनिल कहते हैं कि वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से कभी डिमांड ही नहीं करते हैं।

शादी के दिन कन्या पक्ष के लोग गांव में खान-पान के लिए निमंत्रण देते हैं तो खाना खाने के वक्त गांव के लोग संदेश के रूप में डलिया में चावल, सब्जी, दाल हर घर से सहयोग के रूप में देते हैं ताकि कन्या पक्ष को खिलाने-पिलाने में भार नहीं हो। फिर यही परंपरा अन्य दूसरे घरों में भी शादी होने पर निभाई जाती है। इससे जहां बेटी के बाप को राहत मिलती है, वहीं आपसी भाईचारा और प्रेम भी कायम रहता है। दहेज की बात को लेकर आज तक कभी इस समुदाय में शादी नहीं टूटी है।

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