हिंदी दिवस : सबसे पहले बिहार में शुरू हुआ हिंदी आंदोलन

‘हिंदी भाषी प्रदेशों में सबसे पहले बिहार प्रदेश में सन् 1835 में हिंदी आंदोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिंदी प्रतिष्ठित हुई। किंतु पाठ्््य पुस्तकों का सर्वथा अभाव था।पटना के खड्ग विलास प्रेस ने विभिन्न विषयों में पाठ्य पुस्तकें तैयार करा कर इनका प्रकाशन किया।

साहब प्रसाद सिंह,उमानाथ मिश्र,चण्डी प्रसाद सिंह,काली प्रसाद मिश्र,प्रेमन पांडेय आदि लेखकों ने इस दिशा में सक्रिय रूप से सहयोग किया था। साहब प्रसाद सिंह की ‘भाषा सार’ नामक पुस्तक सन् 1884 से 1936 तक बिहार के स्कूलों और कालेजों में पढाई जाती रही।

‘उत्तर प्रदेश के बलिया निवासी महाराजकुमार राम दीन सिंह ने सन् 1880 में पटना के बांकी पुर में खड्ग विलास प्रेस की स्थापना की थी। उन्होंने अपना जीवन शिक्षक के रूप में आरम्भ किया था तथा पाठ्य पुस्तकों और हिंदी पुस्तकों के अभाव ने उन्हें प्रकाशन व्यवसाय के लिए प्रेरित किया था।

उन्होंने स्वयं पाठ्य पुस्तकें तैयार कीं और अन्य लोगों से पुस्तकें लिखवाईं।इन कृतियों का प्रकाशन खड्ग विलास प्रेस ने किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र की सारी रचनाएं खड्ग विलास प्रेस में ही छपीं। राम दीन सिंह का बचपन पटना जिले के तारण पुर गांव में बीता जहां उनके मामा का घर था।

राम दीन सिंह के पुत्र सारंगधर सिंह भी एक बुद्धिजीवी राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे वे सन् 1937 में डा.श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बने मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव थे।बाद में वे बिहार से संविधान सभा के सदस्य बने।उन्होंने 1952 से 1962 तक पटना को लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया। 1962 में भी उन्हें टिकट दिया जा रहा था।किन्तु उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था।

1977 में मैं अक्सर उनके एक्जिविशन रोड स्थित बंगले पर जाकर घंटों बातचीत किया करता था।उनसे संस्मरण सुनता था। अब तो सारंगधर बाबू नहीं रहे। पता नहीं उन्होंने कोई संस्मरण लिखा या नहीं। हालांकि उन दिनों उनके परिजन बताते थे कि वे कुछ लिखते रहते हैं।

Surendra Kishore

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