नीतीश के सामने नतमष्तक हुआ बिहार के हरेक अख़बार का सम्पादक, मानव श्रृंखला को लेकर गजब सेटिंग है

कल बिहार सरकार द्वारा आयोजित मानव श्रृंखला का कवरेज हिंदुस्तान अखबार ने 10 पन्नों में किया है, प्रभात खबर ने 8 पन्नों में। दैनिक जागरण, आज और सहारा मेरे घर आता नहीं, इसलिये बता नहीं सकता। दिलचस्प है कि दैनिक भास्कर ने इस खबर को सिर्फ तीन पन्नों में आधे आधे पन्ने की जगह दी है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी यही किया है। इन चारों अखबार के पहले पन्ने को देखिये। हिंदुस्तान और प्रभात खबर के लिये यह सबसे बड़ी और ऐतिहासिक खबर है। पहले पन्ने पर आठ कॉलम में छपी है। भास्कर ने भी आठ कालम जगह दी है। हिंदुस्तान ने पहले पन्ने पर विशेष संपादकीय भी लिखा है। टाइम्स ऑफ इंडिया के लिये यह सेकेंड लीड है।

किसी भी अखबार ने यह सवाल नहीं किया कि इस भीषण ठंड में लोगों को बेवजह क्यों सड़क पर खड़ा किया गया। इस वजह से दो लोगों की मौत भी हो गयी। सरकारी पैसों का ऐसा दुरुपयोग क्यों? यह सब इसलिये लिखा है कि इन तथ्यों से बिहार के अखबारों का चरित्र समझा जा सकता है। अलग अलग अखबारों का चरित्र भी अलग अलग दिखता है। विश्लेषण करना आपका काम है।

Raj Kamal Choudhary : जी, अपना अपना विचार । पैसों क़ी बर्बादी उन्हें लगती होगी जो अपने बच्चे को स्कूल केवल डिग्री दिलाने के लिए ही भेजते होंगे । अगर स्वस्थ समाज क़ी चाहत है तो सबसे पहले लोग जागरूक हो, सतर्क रहे और भविष्य के लिए कुछ बेहतर करने क़ी सोच रखे ।

Pushya Mitra : Raj Kamal Choudhary जागरूकता मानव श्रृंखला से नहीं फैलती। उसके लिये शिक्षण प्रशिक्षण करना पड़ता है।जागरूकता की सबसे अधिक जरूरत मुजफ्फरपुर में थी, जहां जानकारी के अभाव में 200 बच्चे मर गए। वैसे यह पोस्ट सरकार पर नहीं, अखबारों पर है।

Raj Kamal Choudhary : जी, एक ही विषय पर सोचते रहना, ये कहाँ क़ी समझदारी है। गंभीर नहीं हुआ था तत्समय, ये सब स्वीकार भी किए फ़िर चेते भी। ये आप भी अच्छे से महसूस किए। लेकिन जिस तरह से पटना बाढ़ से प्रभावित हुआ और पिछ्ले वर्ष जिस तरह से पानी का लेवल कई जिला में खत्म हुआ तो ये समस्या पूर्ण बिहार क़ी हीं है जिस पर सरकार पूरा फोकस दे दी और चुनौती के रूप में अंगीकार किया। इस बात को आप राज्य को एक व्यक्तित्त्व समझ, जान सकते हैं प्राथमिकता क्या होनी चाहिए ।

Vimalendu Singh : Raj Kamal Choudhary भाई!ऐसी जागरूकता का नाश हो। श/राबबन्दी के लिए भी लोगों ने ठिठुरन का आनन्द लिया था कतार में लगकर। कोई अगर बिहार में श/राबबंदी का दावा कर रहा हो तो उसे/उन्हें मेरा प्यार/प्रणाम। मिड डे मील खाकर छपरा में बच्चे म/रते रहे, चमकी बुखार ने क्या कहर ढाया, लोगों को पता है। जलजमाव से पटना में और बाढ़ से कोशी इलाके में क्या हुआ लोग जानते हैं। इन तमाम परेशानियों में सरकार और सरकार के मुखिया का क्या रवैया रहा लोगों को पता ही होगा। और न पता है तो लोग लगते रहे कतारों में और करते रहें लोगों को जागरूक। किसी को किसने रोका है? और रुकने से कोई क्यों रुके? खुशफहमी कायम रहे। मुझे तो बस साहब की खामोशी याद है। 20 करोड़ पौधों को अगर किसी जमीन पर फेंक भी देते तो एकाध करोड़ तो बिना देखरेख के भी पनप जाता। वह इससे से बेहतर होता।

PUSHYA MITRA(Facebook timeline)

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