कोरोना काल में अंतिम संस्कार भी महंगा…पहले हाेते थे11 हजार तक खर्च, अब 25 हजार से कम में मुश्किल

कोरोना से मरने वालाें के पार्थिव शरीर काे संक्रमण के भय से अपने भी छूना नहीं चाहते। मौत के बाद जल्द से जल्द अंतिम संस्कार कर देने की कोशिश करते हैं। इसका फायदा लकड़ी बेचने वाले, हजाम, पंडित, डोम और अन्य सामग्री बेचने वाले उठा रहे हैं। एक के अंतिम संस्कार में 20-25 हजार रुपए खर्च हो रहा है। यदि सामान्य लकड़ी से शव को जलाया या मोलभाव किया, तो दाे-तीन हजार रुपए बच जाएंगे। आम दिनों में अंतिम संस्कार में 9 से 11 हजार रुपए खर्च होते थे। दैनिक भास्कर की टीम ने बांस घाट और गुलबी घाट पर लोगों को होने वाली परेशानी की पड़ताल की।

लकड़ी 10 गुनी महंगी, 25 रुपए मीटर का कफन 80 रुपए मीटर में बिक रहा : जाे लकड़ी 150-200 रुपए में 40 किलो मिलती थी, वह अभी 15-17 सौ रुपए में मिल रही है। 25 रुपए प्रति मीटर बिकने वाले कफन का रेट 80 रुपए अाैर 300 से 500 रुपए में मिलने वाली पीठी का मूल्य 1600 रुपए से अधिक है। पंडित, हजाम और अंतिम संस्कार में सहयोग करने वाला डोम राजा मृतक के परिवार की हैसियत और रहन-सहन के हिसाब से वसूली करते हैं। यह 7 हजार से 25 हजार रुपए तक हो सकता है। जबकि, कोरोना संक्रमण काल से पहले पांच हजार रुपए तक लगते थे। हालांकि, मशीन से शव का अंतिम संस्कार कराने में खर्च कुछ कम हो जाता है। लेकिन, बांस घाट और गुलबी घाट की मशीन अक्सर खराब रहती है। अगर मशीन से अंतिम संस्कार करवाना है तो 5600 से 7000 रुपए के बीच खर्च होगा। इसमें शव को दाहगृह तक पहुंचाने के लिए दो हजार रुपए, सामग्री के लिए 2500 रुपए, पंडित और हजाम के लिए 1100 रुपए लगेंगे।

पहले से पांच गुना अधिक अा रहे शव : पहले बांसघाट, गुलबी घाट और दानापुर में राेजाना 10 से 15 शवाें का अंतिम संस्कार हाेता था। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बाद संख्या काफी बढ़ गई है। दानापुर में हर दिन 30 से अधिक, बांस घाट पर 10-12 और गुलबी घाट पर 20 शवाें का अंतिम संस्कार हाे रहा है।

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