पटना के इस रेलवे स्टेशन पर गरीब बच्चों के लिए लगता है निशुल्क कोचिंग सेंटर, तैयार हो रहा भविष्य का IAS-IPS

बिहार में गायत्री परिवार का शिक्षा आंदोलन, प्लेटफार्म पर गायत्री परिवार की बाल संस्कारशाला : गायत्री परिवार की युवा इकाई प्रांतीय युवा प्रकोष्ठ बिहार द्वारा संचालित श्री राम बाल संस्कारशाला राजेंद्र नगर का एक दृष्य…


भारतीय धर्म और अध्यात्म तो ऐसा ही रहा है…सच में लोगों की नई तकदीर गढ़ रहा है, श्रीराम बाल संस्कारशाला : वास्तव में किसी को धर्म और अध्यात्म का मतलब समझना हो तब वे इन बच्चों और इन्हें पढ़ानेवाले युवा साथियों से जरूर मिलें। खुद पढ़ाई कर रहे ये किशोरवय छात्र शहर की झुग्गियों में रहनेवाले बच्चों को पढ़ाने में जुटे हैं। इसके बदले इन्हें कोई मानदेय नहीं मिलता है। इस तरह के कार्य करने की प्रेरणा अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचारों से मिल रही है।

गायत्री शक्तिपीठ कंकड़बाग पटना से ये बच्चे मार्गदर्शित हो रहे हैं। यह तस्वीर राजेंद्र नगर टर्मिनल की है। पटना शहर में ऐसे करीब 30 से 35 स्थानों पर यह श्रीराम बालसंस्कारशाला चल रहे हैं। यहां पढ़ने के लिए आनेवाले बच्चे की एक ही जाति है। वे गरीब हैं। लेकिन होनहार हैं। वे अपनी परिस्थितियों को मात देकर आगे निकलना चाहते हैं। मुझे धर्म की इस तस्वीर से बेपनाह मुहब्बत है।

पता चला है इस संस्कारशाल के बच्चों ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में 80 से 90 प्रतिशत तक अंक भी हासिल किया है। इन संस्कारशालाओं के बच्चे आज पीएमसीएच, एनएमसीएच, एनआईटी, बीआईटी समेत कई प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ाई भी कर रहे हैं। इसका कोई शोर नहीं है। कोई दिखावा नहीं है। धर्म की यह आंधी वाकई में घर, परिवार, समाज और राष्ट्र की तस्वीर बदल रही है। मौका मिले तो कभी इन केंद्रों पर समय निकाल कर आप भी आइए। मन प्रफुल्लित हो जाएगा।

मुझे गर्व है कि इस संस्कारशाला की पहली इकाई की बुनियाद रखने में अपने पसीने की भी एक बूंद शामिल है। 20 साल पहले कंकड़बाग थाने के समीप से शुरू किया गया श्रीरामबालसंस्कारशाला रूपी इस पौधे ने अपना विस्तार ले लिया है। सभ्य, सुशील और अनुशासित युवाओं की एक अच्छी पीढ़ी इस नर्सरी से तैयार हो रही है। मुझे ऐसा धार्मिक होना ही पसंद है।

पूरी जिंदगी लूट, भ्रष्टाचार और गलत काम किए और जब घरवालों तक ने तिरस्कृत कर दिया तब हरे राम.. हरे कृष्ण करने में जुट गए। सच कहूं तो ऐसे लोगों को ही देखकर मन धर्म से विमुख होने लगता है। आज मंदिरों में ऐसे ही स्वार्थी और लालची लोगों की भीड़ है जो भगवान से भी पूजा के रूप में सौदेबाजी करने आ रहे हैं। कम ही लोग हैं जो लोक कल्याण के भाव से पूजा और यज्ञ हवन कर रहे हैं। मेरी नजर में तो बाल संस्कारशाला में पढ़ानेवाले ये युवक धर्म और अध्यात्म के पुरोधा ही हैं।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

Dr ujjwal kumar

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