गया में श्राद्ध को नहीं पहुंचे एक भी श्रद्धालु, परंपरा बरकरार रहे, इसलिए पंडा खुद कर रहे कर्मकांड

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PATNA : सर्व तीर्थो में प्रमुख गया तीर्थ…। भाद्रपद पूर्णिमा से पितरों का पितृपर्व ‘पितृपक्ष’ शुरू हो गया। मोक्षभूमि गयाधाम में तीन पीढ़ी के श्राद्ध के लिए एक भी पिंडदानी नहीं पहुंचे। सदियों से चली आ रही परंपरा को पूरी आस्था, श्रद्धा व विश्वास के साथ निर्वहन करने के लिए पंडा समाज एक बार फिर आगे बढ़ा है। पंडा समाज खुद ही त्रिपाक्षिक श्राद्ध यानि 17 दिनी का पिंडदान करेगा। शुरुआती लॉकडाउन में भी यजमान का संकट पड़ने पर एक मुंड व एक पिंड की परंपरा कायम रखने के लिए पंडों ने खुद कर्मकांड किया था। अब पितरों की इस परंपरा को पूरा करने के लिए यह कदम उठाया गया है। गयावाल पंडों की माने तो कोरोना के कारण पितृपक्ष मेला में कर्मकांड के लिए एक भी यजमान नहीं आए हैं। प्रशासनिक निर्देश के बाद पंडों ने भी यजमान को आने से मना कर दिया है।

पितृपक्ष महासंगम में 17 दिनी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यजमान तीन पीढ़ी का श्राद्ध तीन पक्ष में पूरा करते हैं, लेकिन इस बार तीर्थयात्रियों का प्रवेश ‘लॉक’ हो गया है। परंपरा को कायम रखने के लिए भइया जी परिवार द्वारा श्राद्ध शुरू किया गया है। पिंडदान का कर्मकांड संजय भइया व विवेक भइया (मोतीवाले पंडा) पत्नी संग पूरा कर रहे हैं। प्रसिद्ध पंडित रामाचार्य जी महाराज व पुरुषोत्तम शास्त्री जी कर्मकांड को पूरा करा रहे हैं। 17 दिनों तक 54 वेदियों में पिंडदान का कर्मकांड होगा। विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य शंभु लाल विट्‌ठल ने बताया कि आस्था, विश्वास व श्रद्धा ही सनातन धर्म की परंपरा है।
पितृपक्ष में त्रिपाक्षिक श्राद्ध का विशेष महत्व: आचार्य

आचार्य नवीन चंद्र मिश्र ने बताया कि त्रिपाक्षिक श्राद्ध का विशेष महत्व है। 3 पीढ़ी के श्राद्ध के लिए 3 पक्ष बना है। एक दिन भाद्रपद पूर्णिमा, 15 दिन आश्विन कृष्ण पक्ष व एक दिन शुक्ल पक्ष। अमावस्या के दिन अक्षयवट में श्राद्ध कर पंडा से आशीर्वाद के बाद गायत्री तीर्थ में मातामह (नाना-नानी) का श्राद्ध किया जाता है।

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