मोदी सरकार में मालामाल हुए अमित शाह के पुत्र जय शाह, कमाई में 14,925 % का इज़ाफ़ा

नरेंद्र दामोदर दास मोदी को जय शाह से धंधा करना सीखना चाहिए। बाप की जो चाय की दुकान थी, वो बचपन के कारण नहीं चला पाये, लेकिन आज तो न बैंक चला पा रहे हैं, न रेलवे चला पा रहे हैं न एविएशन ही इनसे चल रहा है। धंधा करने की रत्ती भर हुनर नहीं है। हर धंधा मंदा चल रहा है… और जय शाह को देखिए..क्या अंबानी क्या… अदानी..सबका बाप निकला.. यहां 100 फीसदी मुनाफा हो जाये, तो लोग पागल हो जाते हैं, शाह का मुनाफा पूरे 15 हजार गुणा है..सीखो मोदी, धंधा करना इसको कहते हैं। इसका बाप अगर प्रधानमंत्री होता तो देश का हर संस्थान हजारों गुणा मुनाफे में चलता..तुमसे न होगा मोदी, छोडो अब सिंहासन कि शाह आता है..

NEWSLAUNDRY की रिपोर्ट के अनुसार कारपोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर लंबे समय बाद अपलोड की गई जानकारी के मुताबिक, गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह का कारोबार फल-फूल रहा है। साल 2014 से लेकर 2019 तक इनकी कंपनी की कमाई में तकरीबन 14, 925 फीसदी का इजाफा हुआ। कारवां के कौशल श्रॉफ ने कुसुम फिनसर्व एलएलपी द्वारा दायर कारोबार से संबंधित दस्तावेजों की पड़ताल कर इसपर रिपोर्ट लिखी। इस पूरे रिपोर्ट के मायने को सरल तरीके से समझा रहे हैं वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता।

जय शाह के ‘अकाउंट’ में 37000% की वृद्धि : गृहमंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह 14 अक्टूबर को देश की सबसे धनी खेल संस्था बीसीसीआई के सचिव नियुक्त हुए हैं. दो साल पहले जय शाह अपनी कंपनी की अतिशय तेज़ रफ्तार विकास के चलते विवादों में फंस गए थे. कथित तौर पर उनकी कंपनी टेंपल एंटरप्राइज़ेज प्राइवेट लिमिटेड ने साल 2015-16 वित्त वर्ष में 16000 गुणा की वृद्धि दर्ज की थी.

हम यहां जिस मामले का जिक्र करने जा रहे हैं उसमें एक बार फिर से जय शाह की तरक्की की रफ्तार बेहद असाधारण है. और इस तरक्की में उन्होंने पूरा एक वित्त वर्ष जाया नहीं किया है, यह तरक्की उन्होंने सिर्फ 24 घंटे के भीतर की है. बाकी बातों की तफ्सील में जाने से पहले हम अपने पाठकों को बता दें की जिस मामले का हम जिक्र करने जा रहे हैं उसमें जय शाह की तरक्की की दर 37000% की है. चौंकना लाजिमी है, पर ये आंकड़े बीते 24 घंटे के हैं. रफ्तार और बढ़ने की पूरी संभावना है.

एक हफ्ते पहले कुछ दलित बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को ट्विटर ने अपने कम्युनिटी स्टैंडर्ड का हवाला देते हुए प्रतिबंधित कर दिया था. इसमें पत्रकार और बहुजन चिंतक दिलीप मंडल, दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में प्रोफेसर रतन लाल, ट्विटर पर बेहद सक्रिय हंसराज मीणा जैसे एक्टिविस्ट शामिल थे. ट्विटर के इस क़दम का विरोध करते हुए दिलीप मंडल समेत तमाम दलित एक्टिविस्ट, अंबेडकरवादी बुद्धिजीवियों ने मोर्चा खोल दिया. हलांकि बाद में दिलीप मंडल का अकाउंट ट्विटर ने बहाल किया और साथ ही उन्हें ब्लूटिक से भी नवाजा, लेकिन यह लड़ाई उससे आगे बढ़ चुकी थी.

#वेरीफाइएससीएसटीओबीसीमाइनॉरिटी जैसे ट्रेंड लगातार राष्ट्रीय स्तर पर पहले स्थान पर ट्रेंड करते रहे. ट्विटर के ऊपर इन लोगों का आरोप है कि वो एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के ट्विटर हैंडल वेरीफाइ नहीं करता है, जबकि बेहद नाममात्र के फालोवर वाले सवर्णों के ट्विटर हैंडल को आसानी से वेरीफाइ कर देता है.

जैसे ही ब्लू टिक यानी ट्विटर द्वारा वेरीफाइड एकाउंट्स का जिक्र छिड़ा, एक पूरी अलग बहस ट्विटर की ब्लूटिक पॉलिसी को लेकर छिड़ गई. ऐसे तमाम लोग है जिनके फॉलोवर लाखों की संख्या में हैं लेकिन उन्हें ट्विटर ने वेरीफाइ नहीं किया है, जबकि ऐसे तमाम लोग जो सत्ता संरचना के करीबी हैं उन्हें ट्विटर पर बेहद कम सक्रियता के बावजूद ब्लू टिक के जरिए वेरीफाइ किया गया है.

दिलीप मंडल कहते हैं, “डेमोक्रेसी में लोकतांत्रिक संवाद और समानता सबसे जरूरी चीज है. सोशल मीडिया इसका एक मंच है. ट्विटर इस मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम नहीं कर रहा है. वह कुछ चुनिंदा लोगों को, मनमाने तरीके से वेरीफाई करके उन्हें किसी भी बहस-मुबाहिसे में एक अपर हैंड दे रहा. जो वेरीफाई हो जाते हैं, उनको विश्वसनीय माना जाता है. लेकिन यह एकतरफा है. ट्विटर इस मामले में कतई डेमोक्रेटिक नहीं है. उसकी नीति क्या है वेरीफाइ करने की, किसी को समझ नहीं आया.”

जैसे ही ट्विटर की वेरीफिकेशन नीति को लेकर विवाद छिड़ा इसमें गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह की एंट्री हो गई. जय शाह 14 अक्टूबर को बीसीसीआई का सचिव बनने के साथ ही ट्विटर पर अवतरित हुए. तब से लेकर 4 नवंबर तक वो सिर्फ एक व्यक्ति को फॉलो करते थे और उनके कुल 27 फॉलोवर थे. 4 नवंबर तक उन्होंने एक भी ट्वीट नहीं किया था. लेकिन उनका ट्विटर हैंडल ब्लू टिक वेरीफाइड था.

जैसे ही #बेशर्मजातिवादीट्विटर और #वेरीफाइएससीएसटीओबीसीमाइनॉरिटी जैसे हैशटैग शुरू हुए लोगों ने जय शाह के ट्विटर हैंडल को लेकर सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया. उनके वेरिफाइड हैंडल को लेकर ट्विटर को तरह-तरह से घेरा जाने लगा. तत्काल ही एक और चीज देखने को मिली. अपने अस्तित्व में आने के बाद से लगभग निष्क्रिय रहे जय शाह के फॉलोवर्स की संख्या सरपट भागने लगी.

4 नवंबर को ट्विटर और जातिवाद के झमेले में फंसने के बाद जय शाह ने पहला ट्वीट भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ एक फोटो साझा करके दिया. इसके बाद उन्होंने अपना प्रोफाइल पिक्चर भी बदला. बस इतनी सी सक्रियता रही है उनकी ट्विटर पर लेकिन 4 नवंबर की शाम से 6 नवंबर की सुबह के बीच उनके ट्विटर फॉलोवर 27 से बढ़कर 10,000 तक पहुंच गए हैं. आंकड़ों में यह 37000% की ग्रोथ पर ठहरता है.

यहां दो दिलचस्प स्थितियां हैं, एक तो अचानक से जय शाह के फॉलोवर क्यों बढ़ने लगे. दूसरा सवाल ट्विटर से है कि उसकी ब्लूटिक वेरीफिकेशन की नीति क्या है?

तेजी से बढ़े जय शाह के फॉलोवर्स को देखने पर हमने पाया कि ज्यादातर नए फॉलोवर भारतीय जनता पार्टी के जिला, स्थानीय इकाइयों के नेता और कार्यकर्ता है या फिर देशभक्ति, गौरक्षा, हिंदूरक्षा जैसे अनाम संगठनों के लोग हैं. एक और दिलचस्प चीज दिखी कि बड़ी संख्या में नए फॉलोवर उत्तर प्रदेश से हैं.

इस विवाद को बढ़ता देख ट्विटर ने फिलहाल अपनी वेरीफिकेशन प्रक्रिया को स्थगित कर दिया है. ट्विटर द्वारा जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक वेरीफिकेशन अकाउंट प्रोग्राम फिलहाल स्थगित कर दिया गया है.

इस बीच अब तमाम अंबेडकरवादी और दलित चिंतकों ने एक नए हैशटैग के जरिए ट्विटर पर हमला बोल दिया है कि या तो सबको ब्लूटिक दो या फिर सबका हटाओ. यह हैशटैग भी टॉप ट्रेंड कर रहा है. दिलीप मंडल कहते हैं, “ट्विटर इंडिया को यह बताना होगा कि ब्लूटिक देने की उसकी प्रक्रिया क्या है. प्रकाश आंबेडकर के 40 हजार फॉलोवर हैं, कबाली और काला जैसी फिल्में बनाने वाले पीए रंजीत के 8 लाख फॉलोवर हैं, लेकिन उन्हें ट्विटर ने वेरीफाई नहीं किया. गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को सिर्फ 27 फॉलोवर के दम पर वेरीफिकेशन और ब्लूटिक मिल गया.”

दलित एक्टिविस्टों के अकाउंट बैन करने के बाद 5 नवंबर को भीम आर्मी ने मुंबई स्थित ट्विटर कार्यालय का घेराव किया. वहां पर भीम आर्मी के नेताओं के साथ ट्विटर के अधिकारियों की बैठक भी हुई. हालांकि उस बैठक में हुई बातचीत की जानकारी अभी सामने नहीं आ सकी है.

यह जानना भी दिलचस्प है कि किन वजहों से दिलीप मंडल या प्रो. रतन लाल के ट्विटर हैंडल को बैन किया गया. दिलीप मंडल ने एक दलित लेखक की पुस्तक पढ़ने का आह्वान लोगों से किया था और साथ में लेखक का नंबर शेयर किया था ताकि लोग उनसे पुस्तक के बारे में जान सकें. ट्विटर के मुताबिक यह लेखक की निजता के साथ खिलवाड़ था. जबकि स्वयं लेखक ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई थी.

प्रो रतन लाल का मामला तो और भी दिलचस्प है. उनके किसी जानकार को एबी+ ब्लड की सख्त जरूरत थी सो उन्होंने ट्विटर पर यह जानकारी दी कि फलां को एबी+ ब्लड की आवश्यकता है. ट्विटर के मुताबिक यह भी बीमार की निजता के साथ खिलवाड़ है.

दिलचस्प यह है कि इसी ट्विटर पर गांधी जयंती के दिन गोडसे अमर रहे हैशटैग टॉप पर ट्रेंड करता रहा. इसके दो दिन बाद इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद को गाली देने वाले छह हैशटैग एक साथ पूरे देश में टॉप पर ट्रेंड कर रहे थे. लेकिन किसी को इस बात की जानकारी नहीं कि ट्विटर ने स्पष्ट रूप से धार्मिक घृणा और सामुदायिक नफरत फैलाने वालों का एक भी ट्विटर हैंडल बैन किया या कोई अन्य कार्रवाई की हो.

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