पंचब’लि बगैर अधूरा है श्राद्ध, नहीं करने पर पितर हो जाते हैं नाराज

New Delhi: पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के नाम से किया गया विशेष पूजन श्राद्ध कहलाता है। दिवंगत हो चुके लोगों का स्मरण करते हुए उनके प्रति अपनी आस्था और आदर देना ही इस पितृपक्ष का ध्येय है। इन पंद्रह दिनों में परिवार का वातावरण अत्यंत सादा और सात्विक होता है। ब्राह्मण भोजन से लेकर विशेष पूजन से लेकर ब्राह्मण भोजन की परंपरा वाला श्राद्ध तब तक अधूरा है जब तक कि पंचबलि न की जाए। आइए जानते हैं कि श्राद्धकर्ता को कौन सी पांच बलि अवश्य करनी चाहिए —

गोब’ली – गोमाता में सभी देवी-देवता पितृ विद्यमान हैं, अतः पहली पत्तल को भोजन “गोभ्यो नमः” बोलते हुए गाय को खिलाना चाहिए। श्वानब’ली – पुनः पत्तल पर भोजन परोसें और श्वान यानी कुत्तों को खिलायें। काकब’ली – कुओं को तीसरी बलि,चौथी देव और पांचवी बलि चींटी को दें। ऐसा करके श्राद्ध अपने पितरों का वरदान प्राप्त करता है।

इन स्थानों पर श्राद्ध का विशेष महत्व : गया, पुष्कर, प्रयाग, कुशावर्त (हरिद्वार) आदि तीर्थों में श्राद्ध की विशेष महिमा बताई गई है। सामान्यतः घर में गोशाला में, देवालय में, गंगा, यमुना, नर्मदा, आदि पवित्र नदियों के तट पर श्राद्ध करने का अधिक महत्व होता है।

पिंडदान के आठ अंग : पिंड दान में अन्न, तिल, जल, दूध, घी, मधु, धुप और दीप ये आठ पिंड के अंग कहे गए हैं।

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