गया से दिल्ली और बोधगया से राजगीर के लिए चलेगी एसी बस, किराया 1620 रुपये

पितृपक्ष मेले में श्रद्धालुओं के लिए परिवहन विभाग की ओर से 13 सितंबर से गया में 15 नगर बस सेवा शुरू करेगा. वहीं, गया से दिल्ली और गया से राजगीर वाया नालंदा के लिए भी एक-एक एसी वॉल्वो बस का परिचालन होगा, जिसका फ्लैग ऑफ परिवहन मंत्री संतोष कुमार निराला 13 सितंबर को करेंगे.

परिवहन सचिव संजय अग्रवाल ने कहा कि नगर बस सेवा का परिचालन गया के तीन रूटों पर किया जायेगा. विष्णुपद से प्रेतशीला के लिए चार बस, विष्णुपद से बोधगया के लिए सात बस और गया रेलवे स्टेशन से विष्णुपद के लिए चार बसों का परिचालन होगा. दिल्ली से गया आने-जाने के लिए श्रद्धालुओं के लिए विशेष तौर से वातानुकूलित वॉल्वो बस की सेवा शुरू होगी, जो 52 सीटर एसी बस होगा. किराया 1620 रुपये है. दिल्ली से गया और गया से दिल्ली की यात्रा कर सकेंगे.

मेले को लेकर जिला व रेल प्रशासन तैयारी पूरी कर ली है. गौरतलब है कि 12 से 28 सितंबर तक चलने वाले इस पितृपक्ष मेले में देश व विदेश खासकर नेपाल व भूटान से काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. अपने पूर्वजों को पहला पिंडदान पुनपुन में करने के बाद ही गया स्थित विष्णुपद मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं. 15 दिनों तक चलने वाले इस मेले में लोगों की अत्यधिक भीड़ की संभावना को देखते हुए जिला प्रशासन ने अपनी ओर से सारी व्यवस्था कर रखी है.

इस बाबत पुनपुन की प्रशिक्षु बीडीओ सह सीओ अर्शी शाहिन ने बताया कि पुनपुन आने वाले श्रद्धालुओं को ठहरने के लिए धर्मशाला के अलावा एक बड़ा पंडाल का निर्माण कराया गया है. शौचालय व पीने के पानी की समुचित व्यवस्था कर दी गयी है. सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरे भी लगाये गये हैं.

पुनपुन पिंडदानियों के लिए प्रथम द्वार माना जाता है. अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने की परंपरा पौराणिक युगों से चली आ रही है. पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण के बाद श्रद्धालु गया फल्गू नदी के तट पर पिंडदान करते हैं. पुनपुन नदी में तर्पण करने से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है. ऐसा लोगों का मानना है. पिंडदानियों के लिए पिंड स्थल पुनपुन घाट जहां तर्पण करने का महत्व गरुड़ पुराण में वर्णित है. पुनपुन अर्थात च्वनऋषि तपस्या करने के उपरांत जल का पात्र बार-बार गिर जाने को लेकर पुनः पुनः शब्द निकलने से पुनपुन का महात्म है. अध्यात्म के अनुसार भगवान श्रीराम भी अपने पिता दशरथ की मृत्यु के बाद पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान कर पितृ मुक्ति से मुक्ति प्राप्त की. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.

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