मुस्लिम परिवार के लोगों की दिवाली, कहा— सबको रोशनी मुबारक, मां लक्ष्मी और गणेश की कृपा बनी रहे

KRISHNAKANT : ये एक मुस्लिम भाई का घर है। द्वारे पर एक चबूतरा बना है जिस पर ताजिया रखी जाती है। उनका मजहबी झंडा वहां अब भी खड़ा है। लेकिन आज दीवाली थी। उन्होंने वहीं दिए जलाए। मोमबत्तियां जलाईं। जब मैं उधर से गुजर रहा था तो मेरा ध्यान गया। बीवी दिए जला रही थी। शौहर पीछे हाथ बांधे खड़ा था।
मुझे एक बारगी लगा कि कोई मुस्लिम त्योहार भी आ रहा होगा। मैंने पूछा क्या हाल है भैया। बोले ठीक है आइये। मैंने पूछा- और क्या हो रहा। वे बोले- अरे कुछ नहीं। सोचा आज दीवाली है। घर में चार दिया तो जला दिया जाए।

मैं भीतर भीतर अपनी मूर्खता पर शर्मिंदा हुआ कि मुझे देखते ही समझ क्यों नहीं आया और पूछना पड़ा। आखिर यही वो ठीहा है जहां मैंने मोहर्रम की सिन्नी भी खाई है, होली का रंग भी खेला है। वे तो ऐसे ही हैं। बिल्कुल हमारे जैसे। हमारे परिवार जैसे। वे भी बेटी विदा करने के लिए मुहूर्त देखते हैं। वे भी लगभग हमारे जैसे त्योहार मनाते हैं। हमारे त्योहारों में शरीक होते हैं। हम उनकी आस्था के हमराह हैं। हमारे सिर एक साथ कई दर पर झुकते आये हैं। मंदिर पर, चबूतरे पर, दरगाह पर, ताजिये पर, जाने कहां-कहां… खैर, उनकी पत्नी फातिहा पढ़ने जैसी मुद्रा में कुछ कर रही थीं। उन्होंने खत्म किया। फिर शौहर ने कहा- भैया को सिन्नी दीजिए। पत्नी ने मेरी तरफ एक छत्ता जलेबी बढ़ाई। उधर से कुछ बच्चे भी गुजर रहे थे। उन्हें भी जलेबी खिलाई गई।

ये चबूतरा मेरे घर के ठीक सामने है। दोनों घर के दरवाजे एक-दूसरे की तरफ देखते रहते हैं। शायद कई सदी से दोनों दरवाजे आमने सामने यूं ही खड़े हैं, जिनके भीतर कई पीढियां जवान हुईं और गुजर गईं। ये अकेला घर नहीं है। इस घर से सटा पूरा मोहल्ला है। मैंने मोहल्ले में घुस गया। वे घर बेहद सामान्य हैं। बिना प्लास्टर के, ईंट के छोटे-छोटे घर, लेकिन सारे दियों से गुलजार हैं। बच्चे दिए जला रहे हैं। कुछ जला चुके हैं। वे बहुत उल्लास में हैं। वे पटाखे भी छुड़ा रहे हैं। मैं नहीं जानता कि ये कब शुरू हुआ होगा, लेकिन वे दिवाली मनाते हैं और प्रकाश पर्व की खुशी में शरीक होते हैं।

मुझे याद आया कि दिल्ली के गलियारे में कोई जहरबुझा मनुष्य कुछ रोज पहले कह रहा था कि दिवाली हिंदुओं की है। इस त्योहारों के मौसम को जश्न-ए-रिवाज मत कहो। उस कमज़र्फ़ ने हिंदुस्तान देखा ही नहीं है। उसकी आँखों में नफरत की मोटी परत चढ़ गई है।

अरे भइया लोग, ई हिंदुस्तान है। यहां रसखान के बिना कृष्ण नहीं हो सकते। लोक आस्था कितनी लचीली है। एक ही चबूतरे पर दो रूप धरती लेती है। यहां सब आपस में मिलाजुला है। थोड़ा थोड़ा भिन्न लेकिन सब एक। यही है हमारा खूबसूरत हिंदुस्तान। हम सदियों से गंगा में वजू करके नमाज पढ़ते आये हैं।
फ़ोटो में देखकर आप समझ सकते हैं कि यहां चकाचौंध वाली रोशनी थोड़ी कम है, लेकिन अमन, खुशी और मोहब्बत से हमारा ये गांव गुलजार है। मुझे फ़ख्र है कि ये मेरा गांव है। सबको रोशनी मुबारक!

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